पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत ( Pathyakram Nirman Ke Siddhant ) में यह बताया गया है कि बच्चों को शिक्षा ग्रहण के साथ-साथ सभ्यता और संस्कृति के विषय पर भी विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। जिससे की वह आगे चलकर देश और राष्ट्र के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके।
1. बाल केन्द्रिता का सिद्धांत – बाल केन्द्रिता का सिद्धांत में जब पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है तो बालक की आवश्यकता रूचि और योग्यता को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।
मनोवैज्ञानिक बाल केंद्रित शिक्षा पर सर्वाधिक बल देता है। अतः इसके अनुसार पाठ्यक्रम भी बाल केंद्रित होना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि पाठ्यक्रम बालकों की रुचियों, आवश्यकताओं, क्षमताओं, योग्यता, बुद्धि एवं आयु के अनुकूल होना चाहिए। जिससे बालकों को अपनी रूचि के अनुसार विषय चुनने का अवसर प्राप्त हो सके।
2. अनुभवों की पूर्णता का सिद्धांत – अनुभवों की पूर्णता का सिद्धांत में बालक के जो अनुभव होते हैं तो उसमें देखा जाता है कि वे नई – नई चीजों को करना चाहते हैं। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।
3. स्वरूप आचरण के आदर्शो की प्राप्ति का सिद्धांत – स्वरूप आचरण के आदर्शो की प्राप्ति का सिद्धांत में बालक अपने देश के लिए एक अच्छे नागरिक बन सके और उनका आचरण अच्छी हो। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। जिसे की बालक में विकास हो।
4. जीवन की सम्बंधित होने का सिद्धांत – जीवन की सम्बंधित होने का सिद्धांत में जो पाठ्क्रम निर्माण किया जाता है। वह उनके जीवन के लिए उपयोगी होना जरुरी है।
5. रचनात्मक तथा सृजनात्मक शक्तियों के उपयोग के सिद्धांत – इस सिद्धांत में जब बालक छोटे होते हैं तो उनमें नई – नई खोज करने की रूचि होती हैं। जैसे की प्रोजेक्ट कार्य बच्चों को दिया जाता है। इससे बच्चों की सृजनात्मक शक्तियों का विकास होता है।
6. संस्कृति तथा सभ्यता के ज्ञान का सिद्धांत – इस सिद्धांत में जब पाठ्क्रम का निर्माण किया जाता है तो उनके विषय में संस्कृति तथा सभ्यता के टॉपिक को शामिल किया जाता है। जिससे की उनकी अपनी संस्कृति और सभ्यता का ज्ञान हो।
7. उपयोगिता का सिद्धांत – यह सिद्धांत जीवन से संबंधित होने के सिद्धांत के लगभग अनुरूप ही है। इसके अनुसार पाठ्यक्रम में उन्हीं विषयों को स्थान दिया जाना चाहिए जो बालकों के भावी जीवन में काम आ सके।
नन के अनुसार उपयोगिता पाठ्यक्रम निर्माण का एक महत्वपूर्ण आधार है। पाठ्यक्रम में उन प्रकरणों को सम्मिलित करना चाहिए जो छात्रों के भविष्य में उपयोगी सिध्द हो और जो उन्हेसमाज के योग्य सदस्य बनने में सहायता प्रदान करें।
8. दूरदर्शिता या लचीलापन का सिद्धांत – जब पाठ्क्रम का निर्माण किया जाता है तो उसमें लचीलापन होता है। परिस्थिति और समय के साथ उसमें परिवर्तन भी किया जा सकता है।
9. अवकाश के लिए प्रशिक्षण का सिद्धांत – जब स्कूल में छुटियां होती है तो बच्चों को किस तरह से छुट्टी का उपयोग करना चाहिए। इसके लिए बच्चों को सेवा कार्य करने का मौका भी दिया जाता है। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।
10. जीवन से सम्बंधित समस्त क्रियाओं के समावेश का सिद्धांत – इसमें बच्चें के जीवन से सम्बंधित समस्त क्रियाओं के समावेश किया जाता है कि अपने जीवन में कैसे आगे बढ़ाना चाहिए। पाठ्यक्रम निर्माण का सर्व प्रमुख सिद्धांत यह है कि पाठ्यक्रम में उन्हीं विषयों को सम्मिलित किया जाए ।
जिससे किसी न किसी रूप में बालकों के वर्तमान जीवन से सम्बन्ध रखता है तथा साथ ही वे उनके भावी जीवन के लिए उपयोगी भी हो। ऐसे विषयों का अध्ययन करके ही बालक जीवन में सफलता प्राप्त कर सकेंगे।
11. समुदाय केन्द्रिता का सिद्धांत – पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय छात्रों की आवश्यकताओं के साथ – साथ समुदाय की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। वास्तव में सामुदायिक जीवन से ही पाठ्यक्रम की रचना की जानी चाहिए। यह समुदाय की आवश्यकताओं एवं समस्याओं पर आधारित होनी चाहिए। यह समुदायिक वातावरण के अनुकूल होना चाहिए।
12. जनतंत्रीय या प्रजातंत्रीय भावनाओं के विकास का सिद्धांत – प्रजातंत्र में सभी की जरूरतों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उनकी सहायता की जाती है। किसी भी व्यक्ति के बीच भेद – भाव नहीं किया जाता है। सभी को समान अधिकार दी जाती है। और बच्चों को सिखाया जाता है।
13. विद्यार्थी – केन्द्रीयता का सिद्धांत – इस पाठ्यक्रम में छात्र की रुचियों, आवश्यकताओं, योग्यताओं, स्थितियों तथा उसके विकास स्तर के अनुकूल होना चाहिए। इससे छात्रों की उचित विकास के लिए अनुभव प्राप्त होने चाहिए।
14. क्रिया केन्द्रिता का सिद्धांत – पाठ्यक्रम उन क्रियाओं पर केन्द्रित होना चाहिए जिनमें छात्र रूचि लेते हैं। इसमें खेल क्रियाओं रचनात्मक क्रियाओं तथा प्रोजेक्ट क्रियाओं के लिए अवसर मिलने चाहिए। अर्थात ‘ काम द्वारा सीखने ‘ के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए।
15. शैक्षिक उद्देश्यों से अनुरूपता का सिद्धांत :- पाठ्यक्रम शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन है। अतः पाठ्यक्रम का निर्धारण करते समय शिक्षा के उद्देश्यों पर निरंतर ध्यान रखना चाहिए। तथा पाठ्यक्रम में उन्हीं विषयों एवं क्रियाओं का समावेश करना चाहिए जो शिक्षा के उद्देश्यों के अनुकूल हो। वर्तमान समय में शिक्षा का उद्देश्य बालकों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं चारित्रिक विकास करने के साथ – साथ उन्हें किसी उद्योग अथवा उत्पादन कार्य में निपुण करना चाहिए।
पाठ्यक्रम निर्माण की रूपरेखा : –
किसी भी कक्षा का पाठ्यक्रम निर्माण की रूपरेखा सिर्फ वैसे जानकारों की टीम से तैयार करवानी चाहिए जो पहले से इस काम में निपुण हों। पाठ्यक्रम निर्माण की रूपरेखा तैयार करने में विद्यार्थी , शिक्षक , और शिक्षण का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि तभी अधिगम का उद्देश्य पूरा हो सकेगा।
पाठ्यक्रम निर्माण के उद्देश्य :-
पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है कि बच्चों में शारीरिक, मानसिक, नैतिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। जिससे की बच्चें सही से विकास कर सके। और आगे चलकर भविष्य में उपयोगी सिद्ध हो सके।
पाठ्यक्रम के निर्माण में अध्यापक की भूमिका : –
अभी तक पाठ्यक्रम निर्माण में शिक्षक की भूमिका न के बराबर रही है। बड़ी – बड़ी शिक्षण की एजेंसियां ही पाठ्यक्रम की निर्माण में अहम भूमिका निभाती है। लेकिन शिक्षक का सक्रिय भूमिका होना चाहिए पाठ्यक्रम के निर्माण में क्योंकि आखिरकार शिक्षक को ही पाठ्यक्रम के अनुसार किताबों से ज्ञान छात्रों तक पहुंचाना होता है।
पाठ्यक्रम निर्माण का निष्कर्ष : –
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि बच्चों को शिक्षा के साथ – साथ समुदाय और समाज में भी रहना चाहिए। जिससे बच्चों के अंदर सेवा भाव का विकास हो सके। और बच्चों अपना सभ्यता और संस्कति को सही तरह से पहचान हो सके। जिससे देश और राष्ट्र का विकास कर सके।
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