आज के इस टॉपिक में पढ़ने वाले हैं – बालक के विकास में विद्यालय के प्रभाव। यह टॉपिक Teaching Exam की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इस टॉपिक को सरल और सुव्यवस्थित ढंग से लिखा गया है। आप इस टॉपिक को जरूर पढ़ लें।
बालक के विकास में विद्यालय के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
पहले और आज के समय में शिक्षा प्रणाली में बहुत अंतर देखने को मिल रहा है। पहले के समय में लोगों के पास अपने बच्चों की शिक्षा का स्वयं देखभाल करने का समय था।
वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं करते थे। लेकिन आज के समय में बढ़ती हुई जनसंख्या और बढ़ती हुई महंगाई के कारण भाग-दौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य के पास इतनी भी फुरसत नहीं है कि वह अपने बच्चों की शिक्षा की देखभाल स्वयं कर सके। इसलिए वह अपने बच्चों को विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते हैं।
हम एक – एक करके पुरे 14 वो मुख्य बिंदु पढ़ेंगे जो हमें बताता है कि बालक के विकास में विद्यालय का प्रभाव कितना लाभदायक होता है।
1. विद्यालय बालकों को जीवन की जटिल परिस्थितियों का सामना करने योग्य बनाता है। विद्यालय समाज और संस्कृति के संरक्षण करने के योग्य बनाता है।
2. विद्यालय बालकों को घर तथा संसार से जोड़ने का कार्य करता है। विद्यालय बालकों में व्यक्तित्व का सामंजस्य पूर्ण विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
3. विद्यालय सिर्फ सूचना देने के अलावा बालकों को प्रयोग और समझाकर शिक्षा देता है। शिक्षा-मनोविज्ञान के विकास से बालक को शिक्षा देने के दृष्टिकोण में बदलाव आया है।
4. वर्तमान में विद्यालय, बालक के विकास के लिए विशेष वातावरण प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। साफ वातावरण में बालक में पवित्र भावनाओं का विकास होता है।
5. विद्यालय बालकों का मानसिक, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विकास करता है तथा स्वस्थ रहने का प्रशिक्षण देता है। विद्यालय ही एक ऐसा स्थान है जहां शिक्षित नागरिकों का निर्माण होता है।
6. यदि विद्यालय में एक निश्चित आयु तक के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाय तो उस देश के सभी बालक स्थाई रूप से साक्षर हो जाएंगे। साक्षर होने के साथ-साथ बालक में धैर्य, सहानुभूति, शिष्टाचार जैसी भावनाओं का विकास होता है।
7. बालकों को शिक्षित करने के लिए विद्यालय घर की अपेक्षा अधिक उत्तम स्थान होता है। बालकों को कुछ ऐसी बातें विद्यालय में सिखाई जाती है जो उसे घर में नहीं सिखाया जाता है। बालक को विद्यालय के अलावा बाहरी वातावरण की भी जरूरत होती है।
8. बालक का सम्पूर्ण विकास के लिए उसका घर, समाज, धर्म इत्यादि अच्छे स्रोत होते हैं। लेकिन इन स्रोतों का कोई निर्धारित रूपरेखा नहीं होती है। इसलिए अगर सिर्फ इन्हीं साधनों पर अगर बालक का विकास आश्रित रहे तो उसके विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
लेकिन अगर बालक के विकास का मुख्य स्रोत विद्यालय पर आधारित हो तो बालक का विकास व्यवस्थित ढंग से हो पायेगा। क्यूंकि विद्यालय में निश्चित उद्देश्य और पूर्व – नियोजित कार्यक्रम होता है। इस प्रकार से बालक का व्यक्तिगत विकास सामंजस्यपूर्ण होता है।
9. विद्यालय में बालक का पाठ्यक्रम ऐसे बनाया गया है जिसमें चित्रों और संकेतों को भी सम्मिलित किया गया है। इन चित्रों और संकेतों के माध्यम से बालक किसी भी विषय को आसानी से जल्दी सीख जाते हैं।
10. बालक विद्यालय में संगीत और मनोरंजन के माध्यम से बहुत कुछ सीखते हैं। विद्यालय बालकों को सिखाने के लिए कई तरह के मनोरंजक कार्यक्रम का आयोजन करवाता है। बालक उस मनोरंजन के माध्यम से सीखते हैं।
11. बालक को बाल्यावस्था में जो कुछ भी सिखाया जाता है उसे वह तुरंत सीख जाता है। इसलिए बालक को चार से पांच वर्ष की आयु में ही विद्यालय में नामांकन करवा दिया जाता है।
12. बाल्यावस्था में बालक कच्चे मिट्टी के समान होता है उसे जिस आकार में ढाल दिया जाता है वह उसी आकार में ढल जाता है। अर्थात बालक को जिस तरह की शिक्षा दी जाती है वह उसी तरह की शिक्षा को ग्रहण कर लेता है। बालक इस अवस्था में सही या गलत का निर्णय नहीं कर पाता है।
13. विद्यालय में बालक का एक विशेष प्रकार का आदर्श और विचारधारा विकसित होता है।
14. एक प्रकार से विद्यालय पूरे मानव समाज का लघु रूप होता है। विद्यालय में शिक्षा की प्रक्रिया सामाजिक होती है जिसके कारण पूरे समाज का निरंतर विकास होते रहता है।
बालक के विकास में विद्यालय के अलावा अन्य स्रोत : –
पर ऐसा नहीं है कि बालक के विकास का माध्यम सिर्फ विद्यालय ही होना चाहिए। क्योंकि कुछ ऐसी ज्ञान भी होती है जिसे विद्यालय में नहीं सिखाया जाता है। बालक बाहरी वातावरण, समाज तथा अपने आस-पास के रहने वाले व्यक्तियों से सीखता है। इसके कुछ कारण का मैं आगे वर्णन कर रहा हूँ : –
बालक घर में रहकर अपने माता-पिता तथा घर के अन्य सदस्य के द्वारा अनुशासन, नैतिक गुण तथा निः स्वार्थ जैसे गुणों को सीखता है।
माता-पिता तथा घर का परिवार बालक के विकास की प्रथम पाठशाला होता है। घर का प्रत्येक सदस्य बालक के विकास के निर्माण में सहयोग करता है। बच्चों का रवैया और व्यवहार सामाजिक गुण को दर्शाता है। बच्चों का यह गुण व्यक्तित्व विकास के इर्द-गिर्द घूमते रहता है।
बच्चों के विकास में विद्यालय का नकारात्मक प्रभाव : –
✅कुछ बच्चे ज्यादा होमवर्क की वजह से डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। सुबह उठने के बाद स्कूल जाना, उसके बाद यातायात में समय लगना, घर आते ही 4 – 5 घंटे का होमवर्क करना – इन सबके बाद, किसी और काम के लिए बच्चों के पास समय ही नहीं बचता है।
✅तनाव के कारण बड़े बच्चे गलत आदत का शिकार हो जाते हैं जैसे – सिगरेट पीना, शराब पीना, इत्यादि।
✅समय के अभाव के कारण वो खेल नहीं पाते हैं जिससे उनका शारीरिक और सामाजिक विकास प्रभावित होता है।
✅उनके टैलेंट का विकास नहीं हो पाता है।
✅छोटे बच्चें इतनी अधिक किताब-कॉपी का बोझ सह नहीं पाते हैं।
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निष्कर्ष : – उपयुक्त तथ्यों के आधार पर विद्यालय के स्थान, महत्त्व और आवश्यकता को सरलतापूर्वक समझा जा सकता है। वास्तव में, व्यक्ति और समाज दोनों की प्रगति के लिए विद्यालय अति आवश्यक है। इसलिए, किसी भी सामाजिक ढाँचे में इनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है।