मैं आज आपको किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएँ के बारे में आसान शब्दों में समझाने वाला हूँ। इस टॉपिक को समझाने के लिए मैंने कुछ उदाहरण का भी सहारा लिया है। इसको आप नोट्स समझकर पढ़ें। यह टॉपिक मुख्य रूप से बी एड वाले विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण है। चलिए शुरू करते हैं।
किशोरावस्था की विशेषताएँ ( Kishoravastha Ki Visheshtayen ) :-
मनोवैज्ञानिक स्टैनले हॉल ने किशोरावस्था का अध्ययन किया है। उन्होंने किशोरावस्था पर एक ग्रन्थ भी लिखा है। उनका कहना है कि ‘किशोरावस्था तनाव, तूफान, और विरोध की अवस्था होती है।’
विग और हंट का कहना है कि किशोरावस्था को समझने करने के लिए सबसे उत्तम शब्द है परिवर्तन। इस अवस्था में परिवर्तन के तीन मुख्य प्रकार होते हैं – सामाजिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक होता है।
किशोरावस्था मानव विकास की तीसरी अवस्था होती है। आज हम लोग मुख्य रूप से किशोरावस्था की विशेषताएँ पढ़ेंगे। मैंने इस तरह से समझाया है इस टॉपिक को जिससे इसको लम्बे समय के लिए याद रख पाना बहुत ही आसान है।
किशोरावस्था की अवधि 12 से 18 वर्ष तक होती है। यह अवस्था बाल्यावस्था के समाप्त होने पर प्रारम्भ होती है और प्रौढ़ावस्था के अर्रम्भ होने से पहले समाप्त हो जाती है।
इस अवस्था में बच्चे के विकास में क्रांतिकारी और आकस्मिक परिवर्तन होते हैं। इन सभी परिवर्तन को हम आगे पढ़ने वाले हैं।
किशोरावस्था बड़े नाजुक और परिवर्तन का काल होता है। किशोरावस्था में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक परिवर्तन देखने को मिलते हैं तो आइए हम उन परिवर्तनों के बारे में पढ़े –
1. शारीरिक विकास ( Physical Development ) : –
किशोरावस्था को शारीरिक विकास के लिए सर्वोत्तम अवस्था माना जाता है। इस अवस्था में लड़कियों का शरीर लड़कों की अपेक्षा ज्यादा विकास होता है।
इस अवस्था में अनेक महत्वपूर्ण शारीरिक परिवर्तन होते हैं जैसे – वजन और लम्बाई बढ़ना, किशोर के आवाज में भारीपन आना और किशोरियों के आवाज में और मृदुलता आना, मांसपेशियों और शारीरिक ढांचे में मजबूती आना, किशोर में दाढ़ी-मुछ आना, किशोरियों में मासिक धर्म का शुरुआत होना, मस्तिष्क का वजन बढ़ना, ज्ञानेंद्रियां का सम्पूर्ण विकास हो जाना।
2. मानसिक विकास ( Mental Development ) : –
सभी मनोवैज्ञानिक का कहना है कि किशोरावस्था में शारीरिक विकास के साथ-साथ बुद्धि का विकास भी सबसे तेज गति से होता है। उनके अनुसार इस अवस्था के समाप्त होते-होते बालक में बुद्धि का सम्पूर्ण विकास हो जाता है।
इस अवस्था के कुछ मुख्य मानसिक विशेषताएं हैं – बहुत कल्पना करना, कुछ भी याद करने की शक्ति में सर्वाधिक विकास होना, तर्क और निर्णय करने की शक्ति में विकास होना, भाषा और रूचि में विकास होना, विरोधी मानसिकता ( इसके बारे में हम आगे पढ़ने वाले हैं )।
3. संवेगात्मक जीवन ( Emotional Life ) : –
किशोर का जीवन बहुत ही भावनात्मक होता है। उसमें अत्यधिक संवेग होता है। वह असंभव और असाधारण काम को करने का संकल्प करता है। जैसे – मैं ये कर लूंगा, मैं वो कर डालूंगा। कुछ मौकों पर वह फिल्म के हीरो जैसा व्यवहार करता है।
बहुत ज्यादा रिस्क लेता है। और कभी-कभी इतना हतोत्साहित हो जाता है कि दसवीं कक्षा में सिर्फ रिजल्ट ख़राब होने पर आत्महत्या करने की सोच लेता है।
4. कल्पना का बाहुल्य ( Exuberance Of Imagination ) : –
किशोरावस्था में किशोर कल्पना की दुनिया में खोये रहता है। इसका मुख्य कारण है व्यावहारिक जीवन में उसकी इच्छा तो बहुत कुछ पाने की होती है पर वह उसे प्राप्त नहीं कर पाता है। इसलिए वह उन चीजों को अपने कल्पना में पूरा होते हुए देखकर खुश होता है।
जैसे फिल्म में बीएमडब्लू कार देखकर उसकी इच्छा होती है वह भी अपने दोस्तों के साथ इस कार में घूमे। लेकिन ये संभव नहीं है। इसलिए वह दिवास्वप्न देखने लगता है। इस तरह के कल्पना में रहकर खुश रहने लगता है।
इसलिए वह आत्मकेंद्रित और अन्तर्मुखी रहने लगता है। इस उम्र में बच्चे अपने-आप से और अपने दोस्त से ज्यादा मतलब रखते हैं। इस उम्र में तो बच्चे के दोस्त भी उसके घर-परिवार वाले से ज्यादा क्लोज होते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि उनका दोस्त ही उनके लिए सबकुछ है।
5. आत्मसम्मान की भावना ( Feeling Of Self Respect ) : –
मानव विकास की चार अवस्थाएं में से किशोरावस्था में आत्मसम्मान की भावना से ज्यादा प्रबल होती है। उसे छोटी-छोटी बातों से लगता है कि उसका आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा है।
जैसे कोई उसका बात न माना हो, उसके पापा ने शाम में बाहर जाना मन कर दिया हो, उसकी मम्मी ने उसे बोला हो कि ये उम्र नहीं है मोबाइल रखने की।
हमें यह समझना चाहिए कि यह एक आम बात है इस अवस्था की और इसलिए उससे अमनोवैज्ञानिक व्यवहार न करके प्रेम और सहानुभूति से पढ़ाना और सिखाना चाहिए।
6. वीर पूजा का समय ( Ideal Worship ) –
इस अवस्था में किशोर अपने माता-पिता या शिक्षक को वीर पुरुष नहीं मानते हैं। उनके लिए वीर पुरुष इतिहास के क्रांतिकारी, फिल्मों के हीरो या क्रिकेटर होते हैं। वे उन्हीं का गुणगान करते रहते हैं और उन्हीं के जैसा बनना चाहते हैं।
7. स्वतंत्रता और विद्रोह की भावना ( Feeling Of Freedom And Resistance ) :-
इस अवस्था में बालक स्वतंत्र रहना चाहता है। वह अपने घर परिवार वालों के सभी बातों को नहीं मानता है। वह किसी प्रकार के रीति-रिवाज और अंधविश्वास को नहीं मानता है। अगर उसके ऊपर कोई गलत इल्जाम लगाता है तो उसका वह विरोध करता है। किशोरावस्था में बालक बड़ा ही स्वाभिमानी होता है।
8. अपराध प्रवृति का विकास ( Development Of Criminal Tendency ) :-
वैलेंटाइन का मानना है कि किशोरावस्था ही बच्चे में आपराधिक प्रवृत्ति का विकास का सबसे नाजुक समय होता है। इस काल में ही बच्चे पक्के अपराधी बनते हैं और अपना आपराधिक व्यावसायिक जीवन प्रारम्भ करते हैं।
इसका मुख्य कारण है – स्नेह की कमी, साहसी कार्य करने की इच्छा, आत्म – प्रदर्शन की भावना, व्यवसाय की चिंता, इच्छा पूर्ति में बाधा और असफलता।
9. खुद पर ज्यादा भरोसा ( Excessive Self Reliance ) :-
किशोरावस्था में बालक को खुद पर ज्यादा भरोसा होता है। वह अपने माता-पिता या अपने से बड़े लोगों के बातों को नहीं सुनता और उन्हें अनदेखा कर देता है। उसे लगता है वो सब कुछ कर सकता है और उसके भविष्य के लिए उससे बेहतर कोई नहीं सोच सकता है।
10. स्थिरता और समायोजन का अभाव ( Lack Of Stability And Adjustment ) :-
रॉस का कहना है कि किशोरावस्था में किशोर फिर से शिशु के समान व्यवहार करने लगता है। किशोर के विचार कभी कुछ होते हैं और कभी कुछ। हर पल उसके विचार बदलते रहते हैं। इसका मुख्य कारण है उसमें आकस्मिक परिवर्तन होना।
शैशवावस्था में जैसे शिशु के व्यवहार अस्थिर होते हैं वैसे ही किशोरावस्था में किशोर के व्यवहार अस्थिर हो जाते हैं। जैसे छोटा बच्चा अन्य व्यक्तियों से और अपने वातावरण से समायोजन नहीं कर पाता है उसी प्रकार किशोर भी समायोजन स्थापित नहीं कर पाता है।
शैशवावस्था में शिशु जैसे सिर्फ अपने परिवार वाले के पास जाता है और दूसरे के पास नहीं जाता है उसी प्रकार किशोर सिर्फ अपने आप से मतलब रखता है। वह अपने समाज से ज्यादा मतलब नहीं रखना चाहता है।
क्या आप जानना चाहते हैं ?
किशोरावस्था में विकास के दो सिद्धांत होते हैं : –
1. त्वरित विकास का सिद्धांत – स्टेनले हाल का कहना है इस अवस्था में परिवर्तन अचानक आते हैं।
2. क्रमिक विकास का सिद्धांत – थार्नडाइक, किंग और हालिंगवर्थ का कहना है इस अवस्था में परिवर्तन धीरे-धीरे आते हैं।
निष्कर्ष – ऊपर दिए गए सभी बातों से यह निष्कर्ष निकलता है कि किशोरावस्था में लड़का और लड़कियां बहुत चंचल स्वभाव के होते हैं। उनमें सामाजिक विकास, स्वप्रेम, अपराध की प्रवृति, विषमलिंगी कामुकता और मानसिक परिवर्तन जैसे गुण पाए जाते हैं।
इस अवस्था में बालक और बालिकाओं में काफी परिवर्तन देखने को मिलती है। अगर वह इस अवस्था को सही से पार कर लेते हैं तो उनका जीवन सुखमय हो जाता है।