शैशवावस्था की विशेषताएं | Shaishavavastha ki Visheshtayen

आज के इस लेख में हम बालक के शैशवावस्था की विशेषताएं को डिटेल में पढ़ने वाले हैं. लेकिन शैशवावस्था की विशेषताएँ पढ़ने के पहले हम थोड़ा जान लेते हैं आखिर शैशवावस्था किस अवस्था को कहते हैं.

 

शैशवावस्था जन्म से लेकर 5 वर्ष तक होता है. शैशवावस्था में बालक को कुछ ज्ञान नहीं होता है. वह दूसरे पर आश्रित रहता है. शैशवावस्था में बालक बहुत तेजी से सीखता है. उसे जो कुछ भी बताया जाता है या सिखाया जाता वह जल्दी से सीख जाता है. उसका स्मरण शक्ति बहुत तेज होता है.

 

शैशवावस्था की मुख्य विशेषताएं :-
मानसिक विकास – शैशवावस्था में बच्चे का मस्तिष्क बहुत ज्यादा तेज होता है.

 

सीखने की प्रक्रिया – इस अवस्था में बच्चे को कुछ भी सिखाया जाता है तो वह बहुत तेजी से सीख जाता है.

 

शैशवावस्था में जिज्ञासा – इस अवस्था में बालक के अंदर किसी के भी बारे में जानने की इच्छा बहुत होती है. जैसे-चिड़ियाँ दाना कैसे खा रही है, बिल्ली कैसे बोल रही है.

 

दोहराने की प्रवृत्ति – शैशवावस्था में बच्चे किसी शब्द को एक बार बोलने पर उसे वह शब्द या वाक्य को वह बार-बार बोलता है जिसे हम दोहराने की प्रवृत्ति कहते हैं.

 

शैशवावस्था में निर्भरता – इस अवस्था में शिशु अपने पर निर्भर नहीं होते हैं वे दूसरों पर निर्भर होते हैं. जैसे किसी भी काम के लिए वो अपने माता-पिता पर निर्भर रहते हैं.

 

आत्मप्रेम की भावना – इस अवस्था में बच्चे को अपने आप से प्रेम होता है. जैसे इस उम्र के बच्चों को ये पसंद नहीं होता है कि उसके माता-पिता उसके अलावा किसी और को गोद ले.

 

खेलने की प्रवृत्ति – इस अवस्था में खेलने की प्रवृत्ति को भी हम दो भागों में बाँट सकते हैं. बहुत ही छोटा शिशु अकेले खेलना पसंद करता है और थोड़ा बड़ा हो जाने पर वह अपने age के बच्चों के साथ खेलना पसंद करता है.

 

काम प्रवृत्ति – आप इस बात को जानकार हैरान होंगे की बच्चों में भी काम प्रवृति होता है. लेकिन इस भावना को वह हमारे जैसा दिखा नहीं पाता है. इसके कुछ उदाहरण हैं – माँ का स्तनपान करना, अपने जननांगों पर हाथ रखना.


शैशवावस्था की विशेषताएं
सामाजिक भावना का विकास – इस अवस्था में बच्चा अपने से छोटे भाई, बहन या दोस्त का साथ देता है. जैसे कोई दूसरा बच्चा अगर गिर गया हो तो उसे उठाता है, कोई रो रहा है तो उसे चुप कराता है. अपने खिलौने से दूसरे बच्चों को खेलने देता है. टॉफी, चॉकलेट बाँट कर खाता है.

 

मानसिक कार्यों में तेजी – तीन वर्ष तक के बच्चे में मानसिक शक्ति प्रबल हो जाती है. वह किसी भी चीज में ध्यान लगाकर सीखता है, पुरानी बातें याद रखता है और वह सेंसिटिव हो जाता है.

 

कला का विकास – बच्चे इस उम्र में चित्र बनाने लगते हैं. चूहा, डॉगी, चिड़ियाँ, इत्यादि के फोटो आपने इस उम्र के बच्चे को बनाते हुए देखा होगा.

 

अनुकरण द्वारा सीखने की प्रवृत्ति – इस अवस्था में बालक दूसरों की नकल करके सीखता है. जैसे वो दूसरों को देखकर ताली बजाना सीखता है. दूसरों जैसे खांस कर दिखाता है. और ये सब करने में उसे बहुत आनंद प्राप्त होता है.

 

नैतिक एवं सामाजिक भावना – इस अवस्था में बच्चा न तो नैतिक भावना के बारे में जानता है और न ही सामाजिक भावना के बारे में जानता है. बच्चे को सत्य-असत्य का ज्ञान नहीं होता है.

 

बोलने की अयोग्य अवस्था – इस अवस्था में बच्चें बहुत सही से बोल नहीं पाते हैं. छोटे बच्चे तुतला कर भी कुछ उम्र तक बोलते हैं. बड़े-बड़े वाक्य नहीं बोल पाते हैं.

 

मूल प्रवृति – शैशवावस्था में व्यवहार मूल प्रवृत्तियों पर आधारित होता है. मूल प्रवृति कुल 14 प्रकार के होते हैं.जैसे वो खुश होगा तो मुस्कुराएगा. वो डरेगा तो भागकर अपने माता-पिता के पास जायेगा.

 

संवेगों का विकास – जन्म के समय शिशु में संवेग नहीं होता है लेकिन 2 वर्ष तक बच्चे में सभी संवेग उत्पन्न हो जाता है। मुख्य रूप से 4 संवेग होते हैं – भय, क्रोध, प्रेम और दर्द.

 

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अब हम शैशवास्था में बच्चों के शारीरिक विकास के बारे में पढ़ेंगे : –

 

मस्तिष्क का भार – बच्चे का जन्म के समय मस्तिष्क का भार 300 ग्राम का होता है. लेकिन शैशवावस्था के अंत में 1250 g का हो जाता है.

लम्बाई – शैशवावस्था में बालक की लम्बाई लगभग 51 सेमी होता है तथा बालिकाओं की लम्बाई 50 सेमी होती है. तथा शैशवावस्था के अंत तक बालक की लम्बाई 108 सेमी हो जाता है.

वजन – बच्चे के जन्म के समय उसका वजन सामान्यतः 3 kg होता है. जन्म के छह माह बाद उसका वजन लगभग दोगुना हो जाता है. शैशवावस्था के अंत में उसका वजन 16 kg हो जाता है.

शैशवावस्था में हड्डियों की संख्या 300 होती है.

दांत – शैशवावस्था के अंत तक बच्चे को 16 दांत आ जाते हैं. जिसमें 2 से 3 स्थायी होते हैं और 13 से 14 अस्थायी होते हैं. इन दांतों को हम दूध का दांत कहते हैं.

 

Conclusion ( निष्कर्ष ) : –
शैशवावस्था की विशेषता का कम्पलीट टॉपिक पढ़ने के बाद हम ये निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सीखने का आदर्श काल शैशवास्था ही होता है. अगर आप सच में इसी तरह से और भी टॉपिक्स समझना चाहते हो तो GurujiAdda.com वेबसाइट का सहारा ले सकते हो.

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