बाल विकास से आप क्या समझते हैं | Bal Vikas Se Aap Kya Samajhte Hain

आज मैं आपके साथ Discuss करने वाला हूँ एक बहुत ही Important टॉपिक जिसका नाम है – “बाल विकास से आप क्या समझते हैं ?” इस टॉपिक में आप समझेंगे बाल विकास क्या होता है, इसके बाद आप समझेंगे बच्चों के विकास में विद्यालय की जिम्मेदारी क्या होती है ।

बाल विकास से आप क्या समझते हैं

बाल विकास से आप क्या समझते हैं ?
बाल विकास के अंतर्गत वैसे बच्चों को शामिल किया गया है जिसे कुछ भी ज्ञान नहीं होता है। इसमें बच्चों के लालन-पालन, भरण-पोषण एवं विकास के बारे में बताया जाता है। बाल विकास में बालक एवं बालिका दोनों ही शामिल होते हैं।

 

बच्चों के पालन-पोषण उनके माता-पिता पर निर्भर करता है। बच्चों के शारीरिक विकास के साथ उसका मानसिक विकास में भी समय के साथ वृद्धि होता है। बच्चों के विकास में आस-पास का वातावरण भी जरुरी होता है।

 

बच्चों को पहले स्कूली शिक्षा 3 से 6 वर्ष के बीच दी जाती है। बच्चों को विद्यालय भेजने से पहले उसे आधारभूत ज्ञान होना चाहिए।

 

आधारभूत ज्ञान का मतलब है कि उसे कपड़ा पहनना, शौच क्रिया से संबंधित आदत, भोजन करना और मुँह-हाथ धोने जैसी जानकारी होनी चाहिए।

 

बच्चे को सबसे पहले शिक्षा का ज्ञान उसके माता-पिता से मिलता है। जन्म से लेकर बड़े होने तक का सभी ज्ञान माता-पिता अपने बच्चे को सिखाते हैं। माता-पिता बच्चे को दूध पीने से लेकर सोने तक, खेलना, हंसना, चलना और बोलना सिखाते हैं।

 

बाल विकास के प्रकार :-
बच्चों में मुख्यतः चार प्रकार से विकास होता है – शारीरिक विकास, मानसिक विकास, नैतिक विकास और संवेगात्मक विकास। अगर ये चारों तरीके का विकास किसी बच्चा में सही समय पर होता है तो उस बच्चा का विकास बेहतर माना जाता है।

 

बच्चे के शारीरिक विकास के लिए उसे उचित भोजन दिया जाना चाहिए। बच्चे को सही भोजन नहीं मिलने से उसका शारीरिक विकास सही से नहीं हो पाता है। निर्धन बच्चे के शारीरिक विकास के लिए भोजन और दूध दिया जाना चाहिए।

 

शारीरिक विकास में शिक्षक की भूमिका :-

प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षक के द्वारा उसे उचित भोजन दिया जाना चाहिए। बच्चे को पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में सोने और आराम करने का समय दिया जाना चाहिए। शिक्षक को बच्चे के उम्र के अनुसार खेलकूद और व्यायाम की व्यवस्था करनी चाहिए।

 

बच्चे को चलना सिखाने से पहले उस बच्चे को सबसे पहले उसे खड़ा होने का साहस देना चाहिए। बच्चे को चलाने के लिए उसे किसी ऐसे वस्तु का सहारा देना चाहिए जिससे की वह उसे पकड़कर चल सके। बच्चे को अंगुली पकड़ कर या किसी वस्तु के सहारे चलने के लिए सिखाना चाहिए।

 

बालक और बालिका दोनों की शारीरिक संरचना की बनावट प्रकृति ने उनकी आवश्यकता के मुताबिक़ बनाई है। बालक एवं बालिका दोनों की शारीरिक तथा मानसिक विकास समानुपातिक रूप से होता है।

 

मानसिक विकास में शिक्षक की भूमिका :-
बच्चे का मस्तिष्क जन्म के पांच वर्ष तक पूरी तरह विकसित हो जाता है। बालक लगभग 4 वर्ष की उम्र में स्कूल जाना शुरू कर देता है।

 

स्कूल में बालक अक्षर को सही तरह से पहचान कर उसका प्रयोग करता है। बालक रटकर, समझकर, पुस्तकों को पढ़कर अपने ज्ञान को बढ़ाता है।

 

शिक्षक के द्वारा स्कूल में निम्नलिखित कार्य कराये जाते हैं :-
1. बच्चों को लिखना, पढ़ना और बोलना सिखाया जाता है। इसके अलावा किसी भी कार्य को सावधानी पूर्वक कैसे किया जाना चाहिए उसके बारे में बताया जाता है।

 

2. शिक्षक बच्चों को सीखने के प्रति रूचि को बढ़ाते हैं और वे अपने अनुभवों के बारे में बताते हैं। इस तरह से बच्चों में कौशल का विकास होता है।

 

3. शिक्षक स्कूल का वातावरण शुद्ध करने का प्रयास करते हैं जिससे बच्चों में अच्छी ज्ञान का विकास होता है।

 

4. स्कूल में विभिन्न कार्यक्रम, खेल से संबंधित प्रतियोगिताओं का आयोजन कराया जाता है। इससे बच्चे ज्यादा जल्दी सीख जाते हैं।

 

संवेगात्मक विकास में शिक्षक की भूमिका :-
संवेग का संबंध शरीर के क्रियाकलापों से है। इसके मुख्य रूप से तीन घटक होते हैं। 1. शरीर में अन्तः क्रियाओं का विकसित होना, 2. शरीर के बाहरी अंगों में परिवर्तन होना और 3. अनुभूति का विकास होना।

 

संवेगात्मक विकास में इस तरह से सुधार करना चाहिए :-
1. शिक्षक को सभी बालकों के प्रति एक जैसा व्यवहार करना चाहिए।

2. शिक्षक को बच्चे के अंदर आत्मसम्मान और आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए।

3. शिक्षक को बच्चे के प्रति ऐसा भाव को विकसित करना चाहिए कि वह कुछ कर रहा है तो उस कार्य को करने के लिए शिक्षक का सहायता ले सके। बच्चे के अंदर डर जैसी भावना का विकास नहीं होने देना चाहिए।

 

नैतिक विकास में शिक्षक की भूमिका :-
बच्चे में नैतिक भाव का विकास सामाजिक भावना से होता है। बच्चे में नैतिक भावना का विकास माता-पिता, भाई-बहन, आस-पास के लोग, रिश्तेदार और शिक्षक के द्वारा विकसित किया जाता है।

 

शिक्षक को बच्चे के नैतिक विकास कराना चाहिए : –
1. शिक्षक को बच्चे के सही और गलत के प्रति जागरूक करना चाहिए। बच्चे को सही कार्य के लिए सराहना देना चाहिए।

2. बच्चे को स्कूल में ऐसी कहानी सुनानी चाहिए जिसके सुनने से बच्चे में ज्ञान का विकास हो। कहानी का संबंध ईमानदारी, सत्य, देश के प्रति अच्छे कार्य से जुड़े हुए हो।

3. बच्चे को समुदाय में होने वाले कार्यक्रम में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

4. बच्चे को अपने कर्तव्यों और समाज के प्रति क्या दायित्व है उसके प्रति प्रेरित करना चाहिए।

बाल विकास की कितनी अवस्थाएं हैं

बाल विकास के मुख्य रूप से चार अवस्थाएं हैं :-
1. शैशवावस्था – यह अवस्था जन्म से लेकर 6 वर्ष तक का होता है।
2. बाल्यावस्था – यह अवस्था 6 वर्ष से लेकर 12 वर्ष तक का होता है।
3. किशोरावस्था – यह अवस्था 12 वर्ष से लेकर 18 वर्ष तक का होता है।
4. प्रौढ़ावस्था – यह अवस्था 18 वर्ष के बाद की अवस्था होता है।

 

बाल विकास की विशेषताएं :-
बाल विकास के विभिन्न अवस्थाओं में परिवर्तन देखने को मिलते हैं। बालक जैसे -जैसे अपनी उम्र के साथ बढतें हैं उनका शारीरिक परिवर्तन, संवेगात्मक परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन, नैतिक परिवर्तन एवं भाषा में परिवर्तन देखने को मिलते हैं। ये सभी परिवर्तन शैशवावस्था से प्रौढ़ावस्था तक विकसित होता है।

 

बाल विकास की परिभाषाएं :-
बाल विकास के अंतर्गत मानव के जन्म से लेकर परिपक्वावस्था तक का अध्ययन किया जाता है। इस अवस्था में गुणात्मक परिवर्तन और परिमाणात्मक परिवर्तन देखने को मिलती है। (परिमाणात्मक = शरीर का कद बढ़ना, वजन बढ़ना )
बाल विकास के प्रमुख सिद्धांत :-
बाल विकास के अंतर्गत बालक में शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास देखने को मिलते हैं। बालक के ये सभी विकास एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। बालक में जब शारीरिक विकास होगा तभी उसका मानसिक विकास होगा। जब उसका मानसिक विकास होगा तब उसका सामाजिक विकास होगा।

 

बाल विकास का महत्व :-
बालक का विकास होना बहुत ही जरूरी होता है। बालक के विकास के प्रति माता-पिता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करते हैंअगर बालक का विकास सही से नहीं होता है तो आने वाले समय में बालक को शिक्षा के प्रति रुचि, योग्यता और क्षमता में समस्या उत्पन्न हो सकती है।

आपके लिए दो Important टॉपिक :-

1. किशोरावस्था क्या है ?

2. आगमन और निगमन विधि में क्या अंतर है ?

 

निष्कर्ष:- बाल विकास के इस टॉपिक में मैंने मुख्य रूप से फोकस किया है बालक के शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और नैतिक विकास को कैसे बेहतर ढंग से किया सकता है। अब आप इस टॉपिक का 2-4 पॉइंट्स में अपना Notes बना सकते हैं। इसी के साथ इस टॉपिक को समाप्त करते हैं।

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