किशोरावस्था में सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

इस टॉपिक में आप पढ़ने वाले हैं – किशोरावस्था में सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक। कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं – वंशानुक्रम, शारीरिक तथा मानसिक विकास, संवेगात्मक विकास, परिवार, आर्थिक स्थिति, समाज, समूह, विद्यालय, अध्यापक।

किशोरावस्था में सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

किशोरावस्था में सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक :-

 

1. सांस्कृतिक कारक – इस अवस्था में बच्चे अपने समाज के सांस्कृतिक रीति-रिवाज, धरोहर, मानदंडों से प्रभावित होता है। किशोर अपने समाज के संस्कृति से बहुत कुछ सीखता है। उसका सामाजिक व्यक्तित्व उसी तरह से निखरता है।

 

2. वंशानुक्रम – वंशानुक्रम किशोर के सामाजिक, नैतिक, संवेगात्मक और श्रेणी विकास को प्रभावित करता है।

 

जिस तरह के माता-पिता होते हैं उसी तरह का प्रभाव बालक पर पड़ता है। अगर बालक के पिता-माता का सामाजिक विकास सही तरह से हुआ होगा तो बालक का भी विकास निश्चित रूप से सही तरह से होगा।

 

अगर माता-पिता का सामाजिक विकास सही ढंग से नहीं हुआ है तो बालक का भी विकास सही ढंग से नहीं होगा। इस प्रकार सामाजिक विकास में वंशानुक्रम का एक महत्वपूर्ण स्थान है।

 

3. शारीरिक विकास – बालक के शारीरिक तथा मानसिक विकास का सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान है। अगर बालक का शारीरिक विकास सही ढंग नहीं हुआ है, जैसे – वह दुबला-पतला है, वह हमेशा बीमार रहता है, तो समाज में इस तरह के बालक को सही नजर से नहीं देखा जाता है। इस तरह से उसका सामाजिक विकास सही ढंग से नहीं होता है।

 

4. मानसिक विकास – अगर बालक का मानसिक विकास सही नहीं होता है तो वह बालक समाज के प्रति सही से कुछ सोच नहीं सकता है। वह सही से किसी से बात नहीं कर सकता है। इस तरह से बालक का मानसिक स्थिति उसके सामाजिक विकास को प्रभावित करता है।

 

5. संवेगात्मक विकास बालक के सामाजिक विकास में संवेगात्मक विकास का भी महत्वपूर्ण स्थान है। अगर बालक में प्रेम, स्नेह, सहानुभूति की भावना अच्छी है तो लोग उसके साथ हमेशा मिले-जुले रहेंगे।

 

अगर बालक में द्वेष की भावना ज्यादा हो, ईर्ष्या की भावना ज्यादा हो, बार- बार गुस्सा करता हो तो ऐसी स्थिति में समाज के लोग उससे दूर रहना चाहेंगे। इस प्रकार से स्पष्ट होता है कि बालक के सामाजिक विकास में संवेगात्मक विकास का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है।

 

6. परिवार – बालक जब जन्म लेता है उसे कुछ नहीं पता होता है। वह अपने माता-पिता और परिवार के साथ घर में रहता है। अगर उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य पढ़े-लिखे हों, घर का माहौल अच्छा हो और जिस समाज में वो रहता है उस समाज के लोग पढ़े-लिखे हों, वहां की संस्कृति अच्छी है तो बालक का विकास सही ढंग से होता है।

 

अगर उसका माता- पिता पढ़े-लिखे नहीं है, परिवार के अन्य सदस्य भी पढ़े-लिखे नहीं हैं, उसके घर का माहौल भी अच्छा नहीं हैं, वहां की संस्कृति भी अच्छी नहीं है तो बालक का विकास भी सही ढंग से नहीं होगा।

 

7. आर्थिक स्थिति – जिस बालक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है उसका सामाजिक विकास बेहतर तरीके से हो पाता है और इसके विपरीत जिस बालक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती है वह सामाजिक विकास में पीछे रह जाता है।

 

इस तथ्य को हम एक उदाहरण से समझते हैं। गरीब बच्चे के घर में टीवी, इंटरनेट, मोबाइल इत्यादि नहीं होने की वजह से वह देश-दुनिया और आधुनिक टेक्नोलॉजी के ज्ञान से वंचित रहता है। एक और उदाहरण से देखते हैं – गरीब बच्चे सरकारी स्कूल में जाते हैं। आज के समय में सरकारी स्कूल में शिक्षा की अच्छी सुविधा नहीं है। उसकी दोस्ती भी अपने ही स्तर के बच्चे से होता है।

 

8. विद्यालय – विद्यालय में विभिन्न प्रकार के समुदाय और जाति के बालक शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। अगर बालक गलत होते हैं तो उसका प्रभाव साथ में रहने वाले दूसरे बालक पर पड़ता है। विद्यालय में शिक्षक का आचरण सही नहीं होने से भी उसका प्रभाव भी बालक पर पड़ता है।

 

विद्यालय में जितना अच्छा अनुशासन होगा, किशोर का सामाजिक विकास भी उतना ही बेहतर होगा। इस प्रकार से विद्यालय का माहौल किशोर के सामाजिक विकास को प्रभावित करता है।

 

9. अध्यापक – माता-पिता के बाद बालक ज्यादा समय शिक्षकों के साथ ही व्यतीत करता है। अगर शिक्षक ईर्ष्यालु, घमंडी, बात-बात पर क्रोधित होते हैं तो बालक भी उन्हीं के जैसा हो जाता है।

 

अगर शिक्षक सभी बालकों के साथ एक जैसा व्यवहार करते हैं, ऊंच-नीच भावना नहीं रखते हैं तो बालक का सामाजिक विकास भी अच्छे से होता है।

 

10. छोटे-छोटे समूह – सामान्यतः बाल्यावस्था में बनाई गयी के समूह अस्थाई होती है। लेकिन किशोरावस्था में बनाई गयी समूह स्थाई होती है। इस अवस्था में किशोर अपने मनोरंजन के लिए, संगीत के लिए या किसी अन्य कार्य के लिए समूह बनाते हैं।

 

बालक छोटे-छोटे समूहों के नियमों का पालन आसानी से कर लेते हैं। इन समूह का लाभ वह बड़ा होकर उठता है जब वह अपने वास्तविक समाज में जीता है। अगर इस तरह का समूह का हिस्सा वो न बने और अचानक ही उसे समाज के ढ़ेर सारे नियमों का पालन करना पड़े तो वह झेल नहीं पायेगा।

 

समूह जितना बड़ा होता है बालक का विकास उतना ही ज्यादा होता है। बालक समूह में रहने वाले दूसरे बालक से अनुकरण करके सीखता है।

 

11. अन्य कारक – ऊपर दिए गए कारक के आलावा बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले अन्य कारक हैं – धर्म, संस्कृति, गाँव, शहर।

 

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Conclusion ( निष्कर्ष ) :- इस टॉपिक को पढ़ने के बाद आप सभी महत्वपूर्ण कारक को जान गए होंगे जो किशोर के सामाजिक विकास को प्रभावित करता है। इस टॉपिक के अलावा Teaching से संबंधित अन्य टॉपिक को खोजने के लिए GurujiAdda.com पर Visit करें।

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