आज का हमारा टॉपिक है – सामाजिक विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता – को डिटेल में जानना। अगर आप थोड़े ध्यान से पढ़ेंगे तो इस टॉपिक के लास्ट होने पर आपको ऐसा लगेगा कि किसी टीचर ने आपको 100 प्रतिशत समझा दिया। शुरू करते हैं अब !
सामाजिक विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता :-
सामाजिक विज्ञान का अध्ययन अपनी शुरुआती अवस्था में ही है। सामाजिक शिक्षा आयोग ने इसे प्राथमिक विद्यालय और उच्च माध्यमिक विद्यालय में दो वर्षों के लिए निर्धारित किया है।
इससे पहले शिक्षण संस्थान के पाठ्यक्रम में तीन और विषयों को शामिल किया गया था। कुछ समय बाद पाठ्यक्रम में इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र और अर्थशास्त्र आदि को भी शामिल किया गया था। लेकिन जनसंख्या के विकास और शिक्षा के विस्तार करने के लिए सामाजिक उद्देश्यों कीजरूरी पड़ने लगी है।
इसका प्रमुख कारण था कि उस समय के लोगों को समझाने के लिए किसी भी प्रकार का शिक्षा व्यवस्था की जरूरत नहीं थी। लेकिन वर्तमान समय ऐसा नहीं है। वर्तमान समय में व्यक्ति और समाज समस्याओं से घिरा हुआ है। उन्हें समझाने के लिए व्यवस्थित शिक्षा प्रदान करने की जरूरत है।
मैं आपको सामाजिक विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकताओं को 6 मुख्य बिंदुओं द्वारा समझाने वाला हूँ :-
1. लोकतंत्रात्मक शासन की स्थापना : –
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। यह दिन भारतवासियों के लिए हर्षों उल्लास का दिन बन गया। यह दिन यादगार बन गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीयों के कन्धों पर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ गया। भारत को 26 जनवरी 1950 को एक गणतंत्रात्मक राज्य घोषित किया गया। इससे प्रजातंत्रात्मक समाज में रहने वाले लोगों का अपना अधिकार प्राप्त हुए।
इस प्रकार के अधिकार मिलाने से देश के प्रत्येक नागरिक अपने देश के लिए कुशल एवं योग्य बनाना चाहते हैं वे सोचते हैं कि हम भी लोकतंत्रात्मक समाज की सेवा कर सके। इसके लिए सामाजिक अध्ययन की जरूरत है।
2. समाजवादी राज्य की स्थापना : –
भारतवासियों का दूसरा मुख्य उद्देश्य समाजवादी राज्य स्थापित करना था। भूतपूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का कहना था कि “मैं समाजवादी राज्य में विश्वास करता हूँ और शिक्षक को इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करनी चाहिए।”
इस उदेश्य को पूरा करने के लिए पाठ्यक्रम में उस विषय-वस्तु को जोड़ना पड़ेगा जिसके द्वारा नागरिकों के सामजिक कुशलता, सहयोग, सहकारिता आदि गुणों का विकास हो सके।
3. कल्याणकारी राज्य की स्थापना : –
आजादी के बाद सरकार ने देश को कल्याणकारी राष्ट्र बनाने के लिए बहुत सारे योजनाएं की शुरुआत की। इनमें से कुछ मुख्य योजनाएं हैं – पंचवर्षीय योजना, निःशुल्क शिक्षा और अनिवार्य शिक्षा। किसी भी योजना को पूर्णतः सफल बनाने के लिए उसको सही ढंग से संचालन करना पड़ता है। संचालन की जिम्मेदारी सरकारी तंत्र और नागरिकों पर होता है।
उस समय देश के मासूम नागरिक इतने शिक्षित नहीं थे कि वे इस दायित्व का निर्वाह सही तरीके से कर सकें। इसलिए सामाजिक शिक्षा को विद्यालय के पाठ्यक्रम में इस उम्मीद के साथ जोड़ा गया कि यही बच्चे आगे चलकर इन दायित्यों को भली-भांति निभा सकें।
4. सर्वोदय तथा ग्राम पंचायतों की व्यवस्था : –
विनोबा भावे ने भारत में सबसे पहले सर्वोदय आंदोलन चलाया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था – प्रत्येक व्यक्ति और वर्ग को ऊपर उठाना। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप समाज में बहुत बदलाव हो गए।
गांधीजी ने भी देश की उन्नति के लिए गाँव के लोगों की प्रगति को सर्वोपरि माना। उनका मानना था कि भारत की आत्मा गाँवों में रहती है। इसलिए अगर भारत का विकास चाहिए तो प्रत्येक ग्राम वासियों का उत्थान होना चाहिए।
गांधीजी चाहते थे गाँव स्वशासित हो और एक आत्मनिर्भर इकाई बने। इसलिए आगे चलकर भारत में पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना हुई और गाँवों में समाजवाद की शुरुआत हुई।
इस तरह के परिवर्तित वातावरण से यह आवश्यकता उभर कर आया की अब नागरिक कैसे व्यवस्थित रह सके और मानवीय संबंधों की जटिलता को समझ सकें। इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विद्यालय के पाठ्यक्रम में सामाजिक विज्ञान को लाया गया।
5. औद्योगिक प्रगति एवं वैज्ञानिक आविष्कारों का प्रभाव : –
आजादी के बाद भारत में औद्योगिक क्रांति आयी। देश के संसाधनों का उपयोग होने लगा था। जगह-जगह फैक्ट्री खुलने लगे थे । लेकिन इसके वजह से लोगों की आवश्यकताएं भी बढ़ने लगी थी। जिसकी वजह से मानव के संबंधों में जटिलता उत्पन्न होने लगे थे।
वैज्ञानिक आविष्कारों जैसे – हवाई जहाज, हथियार, इत्यादि – से भी वैश्विक दूरी कम होने लगी थी। कुछ वैज्ञानिक आविष्कार जैसे – बिजली, रासायनिक खाद, कृषि के लिए औजार – तो सही दिशा में थे। लेकिन कुछ अविष्कार तो विश्व को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया था।
मानव जाति को इस विनाश से बचाने के लिए सामाजिक शिक्षा को विद्यालय में लाया गया।
सामाजिक शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का एक और कारण था – भारत का ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत पर चलना। इस सिद्धांत को सफल बनाने के लिए सामाजिक विज्ञान का होना अति आवश्यक था।
6. अन्य समस्याएं : –
समाज विभिन्न प्रकार के समस्याओं से घिरा हुआ है। इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए सामाजिक अध्ययन आवश्यक है। विभिन्न समस्याओं में से पर्यावरण की समस्या सबसे बड़ी है।
सामाजिक अध्ययन की सहायता से छात्र पर्यावरण के समस्याओं के साथ-साथ अपने जीवन में आने वाली समस्याओं का भी हल ढूंढ सकते हैं और वे अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
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2. पर्यावरण शिक्षा का क्या अर्थ है ?
निष्कर्ष – सामाजिक अध्ययन सिर्फ एक विषय ही नहीं बल्कि ये विभिन्न सामाजिक विषयों जैसे – इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र और अर्थशास्त्र – का निवास स्थान है। इस टॉपिक को अच्छे से समझने के बाद हम कह सकते हैं कि यह प्राकृतिक विज्ञान से बिलकुल अलग है।
अंत में मैं यही सलाह देना चाहता हूँ कि यहाँ से मुख्य-मुख्य पॉइंट्स को अपने नोट्स वाले कॉपी में लिखकर 2-3 बार जरूर revise करें।