शिक्षा के अभिकरण का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, वर्गीकरण, निष्कर्ष

आज आप पढ़ने वाले हैं – शिक्षा के अभिकरण। यहाँ पर मैंने बताया है कि बालक के शिक्षा ग्रहण करने में कौन-कौन से साधन का प्रयोग होता है। इसके अलावा हम पढ़ने वाले हैं – शिक्षा के अभिकरण का वर्गीकरण कैसे किया जाता है, औपचारिक और अनौपचारिक अभिकरण क्या होते हैं।

इसके साथ ही आप यह भी पढ़ेंगे कि विद्यालय में शिक्षक और छात्र एक-दूसरे को कैसे प्रभावित करते हैं।

 

शिक्षा के अभिकरण की परिभाषा – 

शिक्षा का अभिकरण का अभिप्राय उन सभी साधनों से है जिससे बालक शिक्षा ग्रहण करता है। अभिकरण का शाब्दिक अर्थ है – साधन या स्रोत या एजेंट। शिक्षा अभिकरण के अंतर्गत वैसे सभी संस्थान आते हैं जहाँ से बालक शिक्षा ग्रहण करते हैं। 

 

क्या आप जानते हैं ? – निर्देशन और परामर्श में क्या अंतर होते हैं ?

 

शिक्षा के अभिकरण का वर्गीकरण –

शिक्षा के सभी अभिकरण को दो दृष्टिकोण से वर्गीकृत किया गया है। पहले दृष्टिकोण से शिक्षा के अभिकरण के दो प्रकार होते हैं – सक्रिय अभिकरण और निष्क्रिय अभिकरण।

दूसरे दृष्टिकोण से शिक्षा के अभिकरण के तीन प्रकार होते हैं – औपचारिक अभिकरण, अनौपचारिक अभिकरण और न-औपचारिक अभिकरण।

चलिए अब हम पहले तरह के दृष्टिकोण का वर्गीकरण को समझते हैं : – 

शिक्षा के अभिकरण का वर्गीकरण

सक्रिय अभिकरण – इस अभिकरण के अंतर्गत वैसे सभी संस्थाएं और विद्यालय को सम्मिलित किया गया है जहां से छात्र और शिक्षक के बीच अन्तः क्रिया का भाव उत्पन्न होता है। जहाँ दोनों ही एक-दूसरे को अपनी भावनाओं व्यक्त करते हैं। ये अभिकरण समाज को एक नई दिशा देने का प्रयास करते हैं।

इस अभिकरण के अंतर्गत विद्यालय, समाज, परिवार, आदि आते हैं। जैसे – अगर परिवार पर एक नजर डाला जाए तो पता चलता है कि परिवार बालक के सामाजिक जीवन में आईना दिखाने का काम करते हैं। जिससे बालक अपनी गलतियों को सुधारने का प्रयास करता है।

इसी प्रकार हम कह सकते हैं कि विद्यालय में छात्र और शिक्षक एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। और एक नई दिशा की ओर अग्रसर बढ़ते हैं। उन दोनों के बीच अन्तः क्रिया प्रत्यक्ष होती है।

निष्क्रिय अभिकरण – इस अभिकरण में शिक्षा का प्रभाव एक ही दिशा में होता है। निष्क्रिय अभिकरण के अंतर्गत – न्यूज पेपर, टेलीविजन, रेडियो, पाठ्यपुस्तक आदि आते हैं। उदाहरण के माध्यम से समझने का कोशिश करेंगे।

अगर आप टेलीविजन या पाठ्यपुस्तक की सहायता से शिक्षा को ग्रहण करते हैं तो उसमें बताए गए बातों के बारे में ही जान पाएंगे आप सवाल-जवाब नहीं कर सकते हैं। क्योंकि आप प्रत्यक्ष रूप से किसी व्यक्ति से शिक्षा ग्रहण नहीं कर रहे हैं।

इसके अलावा एक अन्य दृष्टिकोण से शिक्षा के अभिकरणों का वर्गीकरण किया गया है। इसका वर्गीकरण औपचारिकता के दृष्टिकोण से किया गया है।

औपचारिकता के दृष्टिकोण से वर्गीकरण को तीन भागों में विभाजित किया गया है – 1. औपचारिक अभिकरण 2. अनौपचारिक अभिकरण 3. न-औपचारिक अभिकरण।

औपचारिक अभिकरण औपचारिक एक नियमित साधन है। अर्थात यह एक नियम के अनुसार लम्बे समय तक चलता है। इसमें ज्ञान की प्राप्ति सीधे तौर होता है। अगर छात्र अनुशासित होकर बनाये गए नियमों का पालन करते हैं तो वह निश्चित ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। इसमें बालक का शारीरिक विकास, बौद्धिक विकास आदि होता है।

 

2. अनौपचारिक अभिकरण – अनौपचारिक अभिकरण में नियम या विधि का सहारा नहीं लिया जाता है। यह अभिकरण लक्ष्य को प्राप्ति करने में सहायता करता है। इस अभिकरण को बालक अपने आस-पास के वातावरण या समाज में रहने वालों से सिखता है।

अनौपचारिक अभिकरण में बालक अपने आप सिखता है और आगे बढ़ता है। बालक अपने दैनिक जीवन में घटित होने वाले सभी घटनाओं के बारे में विचार करता है और उसे सीखने का प्रयास करता है।

वह अपने घर, परिवार और आस-पास में रहने वाले पड़ोसियों से कुछ न कुछ रोज सीखने का प्रयास करता है। बालक को किसी वस्तु के बारे में बताकर सिखाने से वह जल्दी नहीं सीख पाता है। लेकिन उसी वस्तु को उसे दिखा कर उसके बारे में बताया जाये तो वह जल्दी सीख जाता है।

बालक को समाज के प्रति जागरूक करने के लिए भीड़ वाली जगह पर अपने साथ ले जाना चाहिए और उसके बारे ज्ञान देना चाहिए। जैसे – मेला, शादी समारोह, सांस्कृतिक कार्यक्रम, आदि।

 

3. न-औपचारिक अभिकरण – अनौपचारिक शिक्षा के समस्याओं को देखते हुए न-औपचारिक अभिकरण का निर्माण किया गया है। इस अभिकरण में बालक को सीखने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं किया गया है। इसमें पाठ्यक्रम तो होते हैं लेकिन उसे पढ़ने के लिए कोई समय नहीं निर्धारित किया गया है। बालक चाहे तो एक साल में समाप्त होने वाले विषय को 1 से 2 महीना में समाप्त कर सकता है।

इस तरह के शिक्षा प्राइमरी विद्यालय में दिया जाता है। बालक के अवकास को ध्यान में रखते हुए इस तरह की व्यवस्था की गई है। बहुत सारे बालक ऐसे होते हैं कि वह किसी काम की वजह से कई दिनों तक स्कूल नहीं जा पाते हैं। वैसे बालक के लिए इस तरह की व्यवस्था की गई है। इस अभिकरण में शिक्षा प्राप्त करने के लिए डिग्री की जरूरत नहीं होती है।

 न-औपचारिक अभिकरण की विशेषताएं

न-औपचारिक अभिकरण की कुछ प्रमुख विशेषताएं :-

1. इस अभिकरण में समय की बचत होती है।
2. इसमें शिक्षा ग्रहण करने के लिए डिग्री की जरूरत नहीं होती है।
3. इसमें नौकरी या काम करने वाले व्यक्ति भी भाग ले सकते हैं।
4. यह कम खर्चीला होता है।
5. यह सीखने का सरल साधन है।
6. इसमें कठिन परिस्थितियों में भी शिक्षा ग्रहण कर सकते है।

 

औपचारिक तथा अनौपचारिक साधन में क्या अंतर होते हैं ?

1. औपचारिक साधन नियमित होते हैं लेकिन अनौपचारिक अनियमित होते हैं।
2. औपचारिक साधन व्यवस्थित होते हैं लेकिन अनौपचारिक साधन व्यवस्थित नहीं होते हैं।
3. औपचारिक साधन में पहले से कार्यक्रम तय किया जाता है लेकिन अनौपचारिक में पहले से कार्यक्रम तय नहीं किया जाता है।
4. औपचारिक साधन में अपनी नियम होती है लेकिन अनौपचारिक साधन में अपनी कोई नियम नहीं होती है।
5. औपचारिक प्रत्यक्ष साधन है लेकिन अनौपचारिक प्रत्यक्ष साधन नहीं है।
6. औपचारिक साधन रोचक नहीं होते हैं लेकिन अनौपचारिक रोचक होते हैं।

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शिक्षा के अभिकरण का निष्कर्ष : –

इस पुरे टॉपिक को पढ़ने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शिक्षा के सभी अभिकरण शिक्षण प्रणाली पर बहुत ही महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। अध्ययन के उद्देश्य को पूरा करने में इन साधनों का व्यवस्थित रूप से इस्तेमाल किया जाता है।

अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि जिस प्रकार से आपने इस टॉपिक को बड़े ही आसानी से समझ लिया उसी प्रकार से आप GurujiAdda.com पर किसी भी टॉपिक को पढ़कर समझ सकते हो।

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