अभिप्रेरणा – अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत, प्रकार, तत्व

अगर आप इस टॉपिक को अच्छी तरह से पढ़ेंगे तो आप अभिप्रेरणा के मुख्य बिंदुओं के बारे में जान पाएंगे। जैसे – शिक्षा के विभिन्न अंगों में अभिप्रेरणा का महत्त्व, अभिप्रेरणा के कार्य, अभिप्रेरणा में कक्षा के वातावरण का महत्त्व, बालकों को प्रेरित करने का उपाए और अभिप्रेरणा का मुख्य सिद्धांत क्या है। इन सभी मुहय बिंदुओं को आप विस्तार से पढ़ने वाले हैं तो देर किस बात की पढ़ने के लिए तैयार हो जाइए।

अभिप्रेरणा का अर्थ – Motivation को हिंदी में अभिप्रेरणा कहते हैं। जब किसी व्यक्ति से पूरी क्षमता के साथ में कार्य कराना हो उसके लिए विभिन्न प्रकार के तकनीकों का उपयोग किया जाता है उसे अभिप्रेरणा कहा जाता है। इसमें पुरस्कार भी हो सकता है, दंड भी हो सकता है, शाबासी भी हो सकता है।

प्रक्रिया किसे कहते हैं ?
जब कोई कार्य निश्चित नियमों के आधार पर क्रमबद्ध रूप से किया जाए उसे प्रक्रिया कहते हैं। यानी एक के बाद में एक चिझे जुड़ी हुई होती है।

शिक्षा के विभिन्न अंगों में प्रेरणा का महत्व लिखिए।
शिक्षा की प्रक्रिया एक अत्यंत कठिन प्रक्रिया है। बालक को सीखने के लिए प्रेरणा का होना बहुत ही जरूरी है। प्रेरणा हमें किसी कार्य को करने के के लिए प्रेरित करता है।

शिक्षा के अनिवार्य अंग कौन-कौन से हैं ?
1. सीखना
2. अनुशासन
3. ध्यान
4. शिक्षण-विधियाँ
5. चरित्र -निर्माण
6. पाठ्यक्रम

हम जानेंगे कि ऊपर दिए गए छः अंगों का महत्व शिक्षा के प्रेरणा में किस प्रकार से है।
1. सीखना की प्रक्रिया – शिक्षा को सीखने की प्रक्रिया में प्रेरणा का महत्व आवश्यक होता है। शिक्षक प्रेरणा का उचित उपयोग करके सीखने की प्रक्रिया को आसान कर सकते हैं।

व्यक्ति प्रेरित होकर किसी भी कार्य को सीख सकता है। जिसके अंदर प्रेरणा की भावना जाग जाता है उसके लिए कार्य करना सरल हो जाता है।

2. अनुशासन – शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन का होना बहुत ही आवश्यक है। अनुशासन के बिना शिक्षा ग्रहण करना बहुत ही मुश्किल होता है. और अनुशासन सीखने के लिए प्रेरणा का होना बहुत ही आवश्यक होता है।

अगर बालक को निरंतर रूप से अच्छे कार्य के लिए प्रेरित किया जाता है तो अनुशासनहीनता का सवाल ही पैदा नहीं होता है। अनुशासनहीनता बालक को कामचोर और आलसी बना देता है। बालक जब अनुशासन में नहीं रहते हैं तो वह बहुत उदंड हो जाते हैं।

3. ध्यान – शिक्षा ग्रहण करते समय बालक का ध्यान केंद्रित होना बहुत ही जरूरी होता है। अगर बालक ध्यान केंद्रित नहीं करता है तो उसे ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है। ध्यान केंद्रित करने में प्रेरणा का योगदान होता है।

जब बालक ध्यान केंद्रित करके ज्ञान की प्राप्ति करता है तो वह शिक्षा के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ जाता है।

4. शिक्षण-विधियाँ – शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने में शिक्षण-विधियों का बहुत बड़ा योगदान होता है।
शिक्षण विधियों को सफल बनाने में प्रेरणा एक अहम भूमिका निभाता है।

5. चरित्र -निर्माण – ज्ञान की प्राप्ति के अलावा शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है बालक का चरित्र-निर्माण करना। इसके लिए प्रेरणा का होना बहुत ही आवश्यक होता है।

चरित्र -निर्माण के लिए बालक के अंदर अच्छी आदतों और सुविचार का होना बहुत ही जरूरी होता है। अच्छी आदतों के लिए बालक को हमेशा प्रेरित करते रहना चाहिए। इस प्रकार हम कहा सकते हैं कि चरित्र-निर्माण में प्रेरणा अहम भूमिका निभाता है।

अभिप्रेरणा प्रक्रिया के 4 तत्व होते हैं : –
1. व्यवहार
2. उद्देश्य
3. लक्ष्य
4. प्रतिक्रिया

अभिप्रेरणा के कार्य : – 
1. अभिप्रेरणा बालक के व्यवहार में अहम भूमिका निभाता है।
2. अभिप्रेरणा ईंधन का कार्य करती है। और इसमें ताकत होती है। जिस व्यक्ति को अभिप्रेरित कर दिया जाता है। वह अपना कार्य को पूरी लगन के साथ करता है। यह दूसरों से कार्य लेने का माध्यम है।
3. अभिप्रेरणा इच्छा शक्ति को जगाती है।
4. अभिप्रेरणा हमारे शरीर को उत्तेजित करता है। जिससे हम किसी कार्य को करने के लिए तुरंत तत्पर हो जाते हैं।
5. अभिप्रेरणा सभी क्षेत्रों में काम करती है।
6. अभिप्रेरणा बालक के चरित्र-निर्माण अहम भूमिका निभाती है।

अभिप्रेरणा में कक्षा के वातावरण के महत्व : – 
कक्षा के वातावरण में अभिप्रेरणा का बहुत बड़ा योगदान होता है। बालक के व्यक्तित्व का निर्माण कक्षा के वातावरण पर निर्भर करता है। अगर कक्षा का वातावरण सही है तो बालक का व्यक्तित्व का निर्माण सही ढंग से होगा।

अगर कक्षा का वातावरण सही नहीं है तो बालक का व्यक्तित्व सही ढंग से नहीं होगा। कक्षा का वातावरण बालक के केवल एक पहलू को नहीं बल्कि कई पहलुओं को प्रभावित करता है।

शिक्षक बालक का मार्ग दर्शक होता है। वह जो भी ज्ञान देते हैं बालक उसे ग्रहण कर लेता है। बालक शिक्षक के बताए गए रास्तों पर चलने लगता है।

कक्षा का वातावरण शिक्षक के ऊपर निर्भर करता है। अगर शिक्षक का व्यवहार बालक के प्रति अच्छा होता है तो कक्षा का वातावरण भी उत्साहवर्धक और आनंददायक होता है। अगर शिक्षक का व्यवहार बालक के प्रति अच्छा नहीं होता है तो कक्षा का वातावरण नीरस और उबाऊ होता है।

बालक कक्षा में शिक्षक से सवाल पूछता है। शिक्षक उस सवाल का जवाब बिना डांटे हुए मुस्कुराके देते हैं तो बालक के अंदर एक आत्मविश्वास जागता है। बालक को शिक्षक के प्रति लगाव बढ़ जाता है।

अगर शिक्षक बालक के सवाल करने पर उसे डांटते हैं या मारते हैं तो बालक के अंदर खौफ पैदा हो जाता है। वह अगली बार से सवाल करना तो दूर की बात हैं उनके सवालों का जवाब भी देने में डरता है। बालक वैसे शिक्षक से घृणा करने लगते हैं और उनके क्लास में बैठना भी नहीं चाहते हैं।

अभिप्रेरण  के प्रकार : – 

  • सकारात्मक अभिप्रेरण 
  • नकारात्मक अभिप्रेरण  
  • बाह्य अभिप्रेरण 
  • आतंरिक अभिप्रेरण 
  • वित्तीय अभिप्रेरण
  • गैरवित्तीय अभिप्रेरण 

बालकों को प्रेरित करने के उपाय : – 
1. बालक को सफलता की सम्पूर्ण जानकारी पहले ही दे देना चाहिए।
2. बालक के योग्यता और रुचि को ध्यान में रखकर शिक्षा की इंतजाम करनी चाहिए।
3. बालक द्वारा किए गए अच्छे काम के लिए सराहना की जानी चाहिए।
4. बालक को प्रेरित करने के लिए विद्यालयों में समय-समय पर प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाना चाहिए। जिससे बालक को आत्म-प्रदर्शन करने का मौका मिल सकता है।
5. प्रतियोगिताओं में अच्छे प्रदर्शन के लिए बालक को इनाम भी देना चाहिए।
6. बालक को प्रेरित करने के लिए शिक्षक को चाहिए कि नीरस विषय को भी रोचक तरीके से पढ़ाए।

अभिप्रेरणा के मुख्य सिद्धांत क्या हैं ?
1. उदेश्य का ज्ञान – छात्रों को शिक्षा देने से पहले उसके उदेश्य के बारे में बता देना चाहिए। शिक्षक जिस टॉपिक को पढ़ा रहे हैं उसके बारे में सबसे पहले बता देना चाहिए कि इस टॉपिक में आप क्या पढ़ने वाले हैं। उदहारण – NCERT Book में सबसे दूसरे या तीसरे पेज पर दिया रहता है कि इस Book में आप किस-किस टॉपिक के बारे में पढ़ने वाले हैं।

2. स्वस्थ प्रतियोगिता का सिद्धांत – शिक्षक को स्वस्थ प्रतियोगिता का आयोजन करवाना चाहिए। इससे छात्र में प्रतिस्पर्धा की भावना का विकास होता है। प्रतियोगिता में छात्रों के बीच धर्म और जाती को नहीं देखना चाहिए।

अगर प्रतियोगिता में छात्रों के बीच धर्म, जाती या किसी अन्य प्रकार से भेद भाव किया जाता है तो इसका असर छात्रों के ऊपर पड़ता है। इसका परिणाम नकारात्मक भी देखने को मिलती है।

3. सुख-दुःख का सिद्धांत – बालक अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं जिससे उन्हें सुख-दुःख की अनुभूति होती है। अगर किसी काम को सीखने में सुख की अनुभूति होती है तो उसे सीखने के लिए प्रेरित होता है।

अगर किसी काम को सीखने में दुःख की अनुभूति होती है तो वह उस काम को नहीं करता है। इसलिए बालक को ऐसे काम देनी चाहिए जिसे सीखने के लिए वह प्रेरित हो।

4. पुरस्कार एवं दण्ड का सिद्धांत – यह सिद्धांत भी सुख-दुःख के सिद्धांत जैसा ही है। अगर बालक को किसी काम के लिए सम्मानित किया जाता है तो बालक उस तरह का काम मेहनत और लगन के साथ करता है।

अगर बालक को किसी काम के लिए दण्डित किया जाता है तो बालक उस तरह का काम नहीं करता है। पुरस्कार एवं दण्ड का सिद्धांत कक्षा में भी देखने को मिलती है।

निष्कर्ष – अभिप्रेरणा के इस टॉपिक में मुख्य रूप से यह बताया गया है कि हम बालक को सीखने के लिए किस तरह से प्रेरित कर सकते हैं। बालकों को प्रेरित करने के लिए किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए।

किसी ख़ास अभिप्रेरणा एक अदृश्य शक्ति है जिससे किसी कार्य करने के लिए स्फूर्ति पैदा होती है। अभिप्रेरणा की वजह से मनुष्य में विभिन्न प्रकार के व्यवहार उत्पन्न हो सकते हैं। लेकिन कभी-कभी विभिन्न प्रकार के अभिप्रेरणा की वजह से किसी ख़ास प्रकार का व्यवहार भी उत्पन्न हो सकते हैं।

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