चिपको आंदोलन क्या है | Chipko Andolan Kya Hai

चिपको आंदोलन क्या है ( Chipko Andolan Kya Hai ) ?
आज हमलोग चिपको आंदोलन क्या है ( Chipko Andolan Kya Hai ) के बारे में पढ़ेंगे। चिपको का अर्थ है ‘चिपकना’ अर्थात इसका सांकेतिक अर्थ है कि पेड़ों से चिपक जाना या गले लगाना। इस आंदोलन का अर्थ यह भी है, कि किसी भी हाल में जान की परवाह किये बगैर पेड़ों को नहीं कटने देना।

 

प्रकृति की रक्षा के लिए ही चिपको आंदोलन ( Chipko Movement ) चलाया गया था। जिसमें पेड़ों व जंगलों को हो रही कटाई का विरोध किया गया। इस आंदोलन को अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए शांतिपूर्ण ढंग से किया गया।

 

चिपको आंदोलन के समय दिए गए नारे को चिपको आंदोलन के दौरान आधार बनाया गया। ऐसे ही पर्यावरण को मानव जीवन से जोड़ते हुए चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई।

 

हमारा जीवन पूरी तरह से पर्यावरण पर ही निर्भर है, इसलिए पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए पर्यावरण को संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है।

 

chipko andolan se aap kya samajhte hain

 

चिपको आंदोलन का इतिहास : –
चिपको आंदोलन की शुरुआत सन 1973 में हुई थी। इस आंदोलन के प्रमुख में गौरा देवी, चंडी प्रसाद भट्ट, सुंदरलाल बहुगुणा, शमशेर सिंह बिष्ट, सुरसा देवी, बचनी देवी, गोविंद सिंह रावत, धूम सिंह ने जी, घनश्याम रातुरी इत्यादि लोग थे।

 

यह आंदोलन उत्तर प्रदेश के चमौली ( वर्तमान उत्तराखंड में ) में हुआ था। इस आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य पेड़ों की कटाई को रोकना और उनका संरक्षण करना था।

 

चिपको आंदोलन की शुरुवात / चिपको आंदोलन किसने चलाया : –
इस आंदोलन को ग्रामीण इलाकों में मुख्य रूप से महिलाओं ने चलाया था। पेड़ों की रक्षा के लिए इस आंदोलन का पूरा ताना-बाना महिलाओं ने ही बना था।

 

जंगल में करीब ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई थी, तभी गौरा देवी ने अन्य महिलाओं के साथ इस नीलामी का विरोध किया। लेकिन इसके बाद भी सरकार व ठेकेदारों के फैसले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

 

जिस समय ठेकेदार द्वारा अपने आदमियों को पेड़ काटने भेजा, तो गौरा देवी और उनके 21 साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की। उन लोगों के नहीं मानने पर महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा और कहा, कि पेड़ों को काटने से पहले हमें काटना होगा। इससे ठेकेदारों को वापस जाना पड़ा।

 

इसके बाद महिलाओं ने स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों के सामने अपनी बात रखी। जिसके फलस्वरूप इस गांव का जंगल नहीं काटा गया। और इस तरह यहीं से “चिपको आंदोलन” की शुरुवात हुई।

 

चिपको आंदोलन के कारण :-  

चिपको आंदोलन का मुख्य का कारण था कि जंगल में स्थित मूल्यवान पेड़ों को काटने से बचाना और प्राकृतिक वातावरण को शुद्ध रखना था। यह आंदोलन उत्तराखंड में शुरू हुआ था।    

 

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Sarvanam Ke Kitne Bhed Hote Hain

 

चिपको आंदोलन का विस्तार : –
सुंदरलाल बहुगुणा जी ने वन नीति के विरोध में 1974 में दो हफ्ते के लिए व्रत रखा था। जिससे ये साबित होता है, की यह आंदोलन महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन की तरह शांतिपूर्ण तरीके से किया गया।

 

1972 से 1979 के बीच 150 से ज्यादा गांवों को चिपको आंदोलन में एक साथ शामिल किया गया। जिसके परिणामस्वरूप उत्तराखंड में 12 मुख्य विरोध प्रदर्शन और कई छोटे-छोटे टकराव भी हुए।

 

यह आंदोलन केंद्रीय राजनीति का भी हिस्सा बन गया, क्योंकि इस आंदोलन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर पूरे 15 सालों के लिए रोक लगा दी।

 

बाद में यह आंदोलन बिहार, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और मध्य प्रदेश तक फैल गया। जिससे यह आंदोलन पश्चिमी घाटी व विंध्य पर्वतमाला में पेड़ों की कटाई को रोकने में भी सफल रहा था।

 

चिपको आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी / चिपको आंदोलन में महिलाओं की भूमिका : –

चिपको आंदोलन को महिला आंदोलन भी कहा जाता है, क्योंकि इस आंदोलन में ज्यादातर महिलाएँ शामिल थी। गौरा देवी के नेतृत्व में इसे आगे बढ़ाया गया और गौरा देवी को चिपको आंदोलन का जनक भी कहा गया।

 

चिपको आन्दोलन पर एक टिप्पणी लिखें।

चिपको आंदोलन 1972 में हुआ था। यह आंदोलन उत्तराखंड के चमोली जिले में हुआ था। यह आंदोलन वनों की अवैध रूप से अंधाधुंध कटाई को रोकने के लिए वहां के स्थित स्थानीय महिलाओं के द्वारा चलाया गया था। इस आंदोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था।

 

चिपको आंदोलन की मुख्य मांगे : –
1. जंगलों और वनवासियों का शोषण करने वाली ठेकेदारी प्रथा को खत्म किया जाए, और जो लोग वनों में मजदूरी करते हैं, उनके लिए न्यूनतम मजदूरी तय कीजिए।

2. स्थानीय छोटे उद्योगों के लिए रियायती कीमत पर कच्चे माल की आपूर्ति की जाए।

3. जब तक 60 फ़ीसदी हिमालय क्षेत्र पेड़ों से ढका नहीं जाता, तब तक हिमालय के वनों में पेड़ों की कटाई को रोका जाए।

4. मृदा और जल संरक्षण करने वाले पेड़ों को रोपने की भी मांग की गई।

 

9 मई 1974 को चिपको आंदोलन की मांगों पर विचार करने के लिए एक कमेटी गठित की गई। जिसकी जांच में आंदोलनकारियों की मांगों को सही माना गया। इसके साथ ही अक्टूबर, 1976 में यह सिफारिश भी की गई, कि 1200 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में व्यावसायिक वन कटाई पर 10 साल के लिए रोक लगा दी जाए।

 

चिपको आंदोलन की उपलब्धि : –
अंत में चिपको आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धिह भी रही, कि इसने देश के अन्य हिस्सों में भी इस तरह के सामाजिक और आर्थिक विषयों पर आंदोलन को प्रेरणा मिली।

 

चिपको आंदोलन की विशेषताएं : –

1. चिपको आंदोलन पर्यावरण संरक्षण के लिए किया गया आंदोलन था।

2. चिपको आंदोलन में पुरुष एवं महिलाएं दोनों का योगदान रहा है।

 

चिपको आंदोलन का प्रभाव : –

1. चिपको आंदोलन से पेड़ को काटने से बचाया गया।

2. चिपको आंदोलन देश के कोने – कोने में फैलने लगा था। केंद्र सरकार को वन संरक्षण से सम्बंधित अधिनियम लाना पड़ा।

 

चिपको आंदोलन से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न : –
1. चिपको आंदोलन कब हुआ ?
Ans – चिपको आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड में 1973 में हुई थी।

 

2. चिपको आंदोलन किस वृक्ष से शुरू हुआ ?
Ans – चिपको आंदोलन खेजड़ी वृक्ष से शुरू हुआ था।

 

3. राजस्थान में चिपको आंदोलन कब हुआ ?
Ans – राजस्थान में चिपको आंदोलन 1730 में हुआ था । इसका नेतृत्व अमृता देवी विश्नोई कर रही थी।

 

4. चिपको आंदोलन के जनक कौन थे ?
Ans – चिपको आंदोलन के जनक सुंदरलाल बहुगुणा थे।

 

5. चिपको आंदोलन की शुरुआत किस राज्य से हुई ?
Ans – चिपको आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड से हुई थी।

 

Conclusion : – हम ऐसा निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि चिपको आंदोलन एक सफल आंदोलन था। यह एक शांतिपूर्वक ढंग से चलाया गया आंदोलन था। ये टॉपिक तो Examiner का इतना favourite टॉपिक है कि इससे question पूछ ही लेते हैं।

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