ज्ञान से आप क्या समझते हैं | ज्ञान के प्रकार | Gyan Se Aap Kya Samajhte Hain

आज का हमारा टॉपिक है – ज्ञान से आप क्या समझते हैं। इस टॉपिक में हम ज्ञान का अर्थ और ज्ञान के प्रकार के बारे में पढ़ेंगे। यह नोट्स को मैंने पूरा करने के लिए 4 किताबें और 3 गाइड का सहारा लिया है। उदाहरण के माध्यम से इस टॉपिक को समझना काफी आसान हो जायेगा।

ज्ञान से आप क्या समझते हैं ?

ज्ञान का अर्थ होता है – विस्तृत जानकारी। इसे अंग्रेजी में Knowledge कहा जाता है। ज्ञान जानकारी और अनुभव का संचार करता है।

ज्ञान की अवधारणा से हमारे मन में यह सवाल पैदा होता है क़ि क्या ज्ञान के स्वरूप को बदला जा सकता है या नहीं। ज्ञान का स्वरूप परिवर्तनीय है या अपरिवर्तनीय। प्रश्न यह भी है कि क्या ज्ञान से संबंधित नियम, निष्कर्ष और तथ्य को बदला जा सकता है।

जब शिक्षक छात्र को शिक्षा प्रदान करते हैं तो वे इन सभी तथ्यों के बारे में बताते और समझाते हैं। कुछ तथ्य ऐसे होते हैं कि उसे परिवर्तित करना मुश्किल है या परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। कुछ तथ्य ऐसे होते हैं कि उसे परिवर्तित किया जा सकता है। कुछ तथ्य में थोड़ा-बहुत परिवर्तन देखने को मिलती है।

जैसे – शिक्षक के द्वारा यह बताया जाता है या पढ़ाया जाता है कि सूर्य पूरब में उगता है और पश्चिम में अस्त होता है। फिर शिक्षक के द्वारा बताया जाता है कि सूर्य स्थिर होता है वह चलता नहीं है। पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है।

इसका मतलब है कि पृथ्वी जब सूर्य का चक्कर लगाती है तो किसी को पता भी नहीं चलता है कि पृथ्वी चक्कर लगा रही है। इस प्रकार के ज्ञान का अभाव होता है।

हम दूसरे उदाहरण की सहायता से भी समझने का प्रयास करेंगे – जब बस सड़क पर चलती है तो रोड के किनारे वाले पेड़-पौधे चलते नजर आते हैं। लगता है कि पेड़-पौधे हमारे साथ चल रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं होता है इसमें बस चलती है और पेड़-पौधे स्थिर होते हैं।

बच्चे पहले दिए गए उदाहरण के माध्यम से इस उदाहरण को आसानी से समझ जाते हैं। पृथ्वी के गति के बारे में ज्ञान होने से भूगोल की शिक्षा में काफी परिवर्तन देखने को मिल रही है। विद्यालय के पाठ्यक्रम को समय-समय पर परिवर्तन करना चाहिए।

ज्ञान के प्रकार

ज्ञान के 3 प्रकार होते हैं। शिक्षा देते समय हमें ये तीनों प्रकार के ज्ञान को ध्यान में रखना चाहिए।

1. आगमनात्मक ज्ञान
2. प्रयोगमूलक ज्ञान
3. प्रागानुभव ज्ञान

1. आगमनात्मक ज्ञान – इस प्रकार के ज्ञान व्यक्ति के अनुभव पर आधारित होता है। जॉन लॉक के अनुसार बालक जब जन्म लेता है तो उसका मन कोरा-कागज की तरह होता है। जैसे-जैसे उसे ज्ञान का अनुभव होता है उस कोरे कागज पर लिखाते जाता है। ज्ञान की प्राप्ति अनुभव के द्वारा होता है।

2. प्रयोगमूलक ज्ञान – इस प्रकार के ज्ञान प्रयोग के द्वारा प्राप्त होता है। उदाहरण के माध्यम से इस टॉपिक को समझने का प्रयास करेंगे जैसे – हम चिड़ियाँ घर में जाते हैं वहां के वातावरण और आवाज को सुनकर ज्ञान प्राप्त करते हैं।

अगर किताब की सहायता से किसी टॉपिक को समझाया गया है तो वह पूरी तरह से समझ में नहीं आ पाता है। अगर उसी टॉपिक को प्रयोग के माध्यम से सिखाया जाता है तो वह जल्दी से समझ में आ जाता है। कहा जाता है कि आँख से देखी हुई वस्तु काफी समय के लिए हमारे मस्तिष्क में छप जाता है।

डयूवी का कहना है कि ज्ञान प्रयास और अभ्यास की प्रक्रिया होती है। जैसे किसी वस्तु के बारे में सोचते हैं या उसके बारे में विचार करते हैं तो परिणाम से हमें जो फल की प्राप्ति होती है उसे हम सीखना कहते हैं।

3. प्रागानुभव ज्ञान – इस प्रकार के ज्ञान प्रत्यक्ष रूप से समझा जाता है। इसमें जब हम किसी सिद्धांत के बारे में समझ जाते हैं तो उसे सिद्ध करने के लिए न हमें निरीक्षण की जरुरत होता है और न ही उसे प्रयोग द्वारा प्रमाणित करने की जरुरत होती है।

प्रवर्तक कांट का कहना है कि अनुभव सत्य और स्वतंत्र होना चाहिए और स्पष्ट रूप से निश्चित होना चाहिए। गणित का सभी ज्ञान प्रागानुभव ज्ञान होता है जैसे – 10 > 9, 9 > 8 और 10 > 8 ।

प्लेटो के अनुसार ज्ञान न्यायसंगत सत्य होता है वहीं डीवी के अनुसार ज्ञान सच्चाई का निष्कर्ष होता है।

ऊपर दी गई जानकारी से पता चलता है कि पहले प्रकार का ज्ञान अनुभव के बाद प्राप्त होता है। दूसरे प्रकार का ज्ञान प्रयोग और निरिक्षण से प्राप्त होता है। और तीसरे प्रकार का ज्ञान अनुभव से परे होता है।

इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि अनुभव केवल तथ्य पर आधारित होता है। लेकिन तथ्य किसी भी बात को सिद्ध नहीं करता है। तर्क अनुभव को ज्ञान में बदलता है।

ज्ञान हमें अनुभव से प्राप्त होता है। ज्ञान क्रमबद्ध चलते रहता है। ज्ञान की सहायता से हम अपने आस-पास के समाज को सुधार सकते है। बुद्धि ज्ञान का अंतिम साक्ष्य है।

ज्ञान की अवधारणा / संकल्पना :-

ज्ञान केवल अनुभूति से प्राप्त नहीं होता है। अनुभूति केवल बाह्य स्वरूप को दिखाती है। बाह्य स्वरूप को देखकर उसके बारे में जब हम सोच विचार करके जानकारी को एकत्रित कर लेते हैं तो उसे भी ज्ञान कहते हैं। ऐसा होने से व्यक्ति के ज्ञान की चक्षु खुल जाते हैं । कहा जाता है कि ज्ञान मनुष्य का तीसरी आँख है। ज्ञान की प्राप्ति मनुष्य के ज्ञानेंद्रियों की एहसास से भी होती है।

ज्ञान के स्रोत

ज्ञान के स्रोत या तरीके :-

ज्ञान प्राप्ति के मूल रूप से पांच प्रकार होते हैं – 1. इन्द्रिय अनुभव 2. साक्ष्य 3. तार्किक चिंतन 4. अन्तः प्रज्ञा तथा अन्तः प्रज्ञावाद 5. सत्ता आधिकारिक ज्ञान।

1. इन्द्रिय अनुभव – मनुष्य की पांच ज्ञानेन्द्रियाँ होती हैं – आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा। मनुष्य अपने पांच ज्ञानेंद्रियों की सहायता से संसार के सभी वस्तुओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेता है।

मनुष्य देखकर, सुनकर, सूंघकर, चखकर और छूकर भिन्न सूचना को एकत्रित कर लेता है। इन सभी सूचनाओं के बारे में जानने के लिए हमारे मन में जिज्ञासा होती है। उन सभी के बारे में जब हम जान लेते हैं तो हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है।

2. साक्ष्य – इसमें ज्ञान की प्राप्ति हमें दूसरे व्यक्तियों या वस्तुओं से प्राप्त होता है। इस तरह के तरीके में ज्ञान प्राप्ति के लिए हम खुद प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होते हैं। जैसे – किताब की सहायता से हम ज्ञान को प्राप्त करते हैं या किसी व्यक्ति के द्वारा बताए गए बातों को सच मानकर उस पर विश्वास कर लेते हैं। हम प्रत्यक्ष रूप से उस जगह पर उपस्थित नहीं होते हैं।

3. तार्किक चिंतन – यह एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है। मनुष्य का ज्ञान तर्क पर आधारित होता है। जब तक हम किसी वस्तु के बारे में तर्क नहीं करेंगे तब तक उसके बारे में सही जानकारी प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

मनुष्य अपने ज्ञान ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से विकसित करता है। वह किसी वस्तु को देखता है, गंध का अनुभव करता है, किसी वस्तु को स्पर्श करता है तो वह सही से उसके बारे में जानकारी नहीं प्राप्त करता है। सही जानकारी के लिए उन सभी के ऊपर तर्क करता है। जिससे उसे सही जानकारी प्राप्त होती है।

4. अन्तः प्रज्ञा तथा अन्तः प्रज्ञावाद – यह भी ज्ञान का एक प्रमुख माध्यम होता है। इसमें किसी वस्तु के बारे में तर्क नहीं करते हैं. यह हमारे मन में अचानक उत्पन्न होने वाला ज्ञान होता है। जैसे – जब हम किसी वस्तु को देखते हैं तो अचानक मन में कई तरह के सवाल उत्पन्न होने लगते हैं।

5. सत्ता आधिकारिक ज्ञान – यह ज्ञान उच्च कोटि के विचार वाले व्यक्ति देते हैं। ऐसे व्यक्ति समाज में गिने-चुने ही होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने ज्ञान को समाज के सामने रखते हैं जिससे समाज के लोगों की भलाई होती हैं। ऐसे व्यक्ति अपने ज्ञान को नई ज्ञान से जोड़ने का काम करते हैं। जिससे समाज के साथ-साथ देश का भी विकास होता है।

ऐसे व्यक्ति के ऊपर विश्वास तब करना चाहिए जब हम उनके बारे में दूसरे लोगों से भी जानते हैं। अगर आप उस व्यक्ति के बारे में किसी और से नहीं सुनते हैं और उन पर विश्वास कर लेते हैं तो आपका ज्ञान संकुचित या रुक भी सकती है।

निष्कर्ष – ज्ञान का विकास एक सतत प्रक्रिया है। ज्ञान के तीन प्रकार होते हैं। ज्ञान का विकास सिर्फ नए ज्ञान को पुराने ज्ञान से ही जोड़कर नहीं होता है बल्कि पुराने ज्ञान में सुधार लाने से भी होता है। इस टॉपिक को लिखने का मेरा मुख्य उद्देश्य था आपको इस टॉपिक को आसान भाषा में समझाना। इस टॉपिक से बीएड और डी एल एड में प्रश्न पूछे ही जाते हैं।

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