आज हमलोग पुनर्बलन का सिद्धांत ( Punarbalan Ka Siddhant ) के बारे में पढ़ेंगे। पुनर्बलन सिद्धांत का महत्त्व , उदहारण , प्रतिपादक, इत्यादि सबकुछ पढ़ेंगे। यह शिक्षण विधि का अत्यंत ही महत्वपूर्ण Topic है। तो करते हैं फिर स्टार्ट।
पुनर्बलन का सिद्धांत ( Punarbalan Ka Siddhant ) :-
जब कोई बच्चा किसी भी क्रिया के भविष्य में होने की संभावना पर बल देता है उसे पुनर्बलन कहते हैं। दूसरे शब्दों में हम इस प्रकार से कह सकते हैं कि जब कोई बच्चा किसी काम को करता है और उस काम के लिए उसे बड़े लोगों के द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है उसे पुनर्बलन कहते हैं।
शिक्षक बच्चों को समय – समय पर पुनर्बलन देता है ताकि बच्चों में कार्य करने की क्षमता की वृद्धि हो सके।
सी. एल. हल का परिचय :-
पुनर्बलन सिद्धांत के प्रतिपादक सी. एल. हल थे। सी. एल. हल U. S. A के रहने वाले थे। सी. एल. हल का पूरा नाम क्लार्क एल. हल है। सी. एल. हल का जन्म 1884 में हुआ था।
सी. एल. हल ने 1915 में अपनी पुस्तक Principle of Behavior में पुनर्बलन का सिद्धांत दिया था। सी. एल. हल ने अपना प्रयोग भूखी बिल्ली पर किया था।
सी. एल. हल का मानना था कि सीखने के लिए पुनर्बलन आवश्यक होता है। और उन्होंने कहा की सीखने का आधार आवश्यकता की पूर्ति होती है।
W. F. Hill के अनुसार – ”पुनर्बलन अनुक्रिया का वह परिणाम है, जिससे भविष्य में उस अनुक्रिया के होने की संभावना में वृद्धि होती है।”
पुनर्बलन के प्रकार :-
पुनर्बलन दो प्रकार का होता है – 1. सकारात्मक पुनर्बलन 2. नकारात्मक पुनर्बलन।
सकारात्मक पुनर्बलन ( Positive Reinforcement ) – सकारात्मक पुनर्बलन का आशय ऐसे पुनर्बलन से है जो किसी भी अनुक्रिया के भविष्य में भी दोबारा होने की संभावना पर बल देता है।
अर्थात जब किसी क्रिया के बाद ऐसी वस्तु या शब्द रूपी सूचना मिले जिससे उसे दोबारा करने की प्रेरणा मिले तो उसे सकारात्मक या धनात्मक पुनर्बलन कहते हैं जैसे बालक के अच्छे कार्य करने पर उसे शाबाशी देना या ट्रॉफी देना, प्रशंसा, पुरस्कार, Promotion आदि इसके उदाहरण है।
नकारात्मक पुनर्बलन ( Negative Reinforcement ) – नकारात्मक पुनर्बलन का आशय ऐसे पुनर्बलन से है जो किसी भी अनुचित क्रिया को भविष्य में दोबारा न दोहराने के लिए प्रेरित करती है।
अर्थात जब किसी क्रिया के बाद ऐसी वस्तु या शब्द रूपी सूचना मिले जिससे दोबारा उस कार्य को करने की हिम्मत नहीं हो उसे नकारात्मक पुनर्बलन कहते हैं। जैसे यदि बालक कोई गलत कार्य करता है तो उसे दंड देकर उस कार्य को दोबारा करने से रोका जाता है। दंड नकारात्मक पुनर्बलन नहीं है। बल्कि दंड से बचना नकारात्मक पुनर्बलन है।
पुनर्बलन का समय :-
1. सतत पुनर्बलन ( Continuous Reinforcement ) :-
जब पुनर्बलन लगातार प्रत्येक कार्य के लिए दिया जाए उसे सतत पुनर्बलन कहते हैं। इस पुनर्बलन के बंद करते ही व्यक्ति कार्य करना भी बंद कर देता है। यह एक अच्छा पुनर्बलन नहीं है।
2. आंशिक पुनर्बलन ( Partial Reinforcement ) :-
आंशिक पुनर्बलन कभी – कभी विशिष्ट कार्य के लिए दिया जाता है। इसे जारी रखने या रोक देने दोनों ही स्थिति में व्यक्ति कार्य करना जारी रखता है। यह एक प्रभावशाली पुनर्बलन विधि है। कंपनियों के द्वारा मजदूरों को अलग – अलग अवसरों पर बोनस का घोषणा करना आंशिक पुनर्बलन का उदाहरण है।
आंशिक पुनर्बलन के प्रकार :-
1. समय अंतराल पुनर्बलन :- यदि पुनर्बलन समय के आधार पर दिया जाए।
2. अनुपात पुनर्बलन :- यदि पुनर्बलन कार्य की गुणवत्ता के अनुपात में दिया जाए। अनुपात पुनर्बलन अधिक श्रेष्ठ है।
3. तत्काल पुनर्बलन :- जब कार्य करने के तुरंत बाद पुनर्बलन दिया जाए तो उसे तत्काल पुनर्बलन कहेंगे। ये विलम्ब पुनर्बलन से श्रेष्ठ है।
4. विलम्ब पुनर्बलन ( Late Reinforcement ) :-
जब कार्य के बहुत देर बाद पुनर्बलन दिया जाए तो उसे विलम्ब पुनर्बलन कहा जाता है। यह अच्छा नहीं होता है। ये ज्यादा दिया जाए तो भी तत्काल पुनर्बलन की तुलना में कम प्रभावी होता है।
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पुनर्बलन का सिद्धांत के उपनाम / अन्य नाम :-
1. अन्तर्नोद का सिद्धांत
2. प्रबलन का सिद्धांत
3. सबलीकरण का सिद्धांत
4. यथार्त अधिगम का सिद्धांत
5. सतत अधिगम का सिद्धांत
6. क्रमबद्ध अधिगम का सिद्धांत
7. चालक न्यूनता का सिद्धांत
पुनर्बलन का सिद्धांत महत्व :-
1. पुनर्बलन का सिद्धांत में बालकों को प्रेरित किया जाता है।
2. पुनर्बलन का सिद्धांत में बालकों के लक्ष्य या उदेश्य स्पष्ट होते हैं।
3. पुनर्बलन का सिद्धांत में बालकों के लिए पुरस्कार एवं दण्ड की व्यवस्था होती है।
4. इस सिद्धांत में syllabus बालकों के जरुरत के हिसाब से होती है।
5. इस सिद्धांत में अधिगम बच्चों के जरुरत के हिसाब से होती है।
6. इस सिद्धांत में बच्चों के कार्य और जरुरत के बीच सम्बंध होना चाहिए।
7. यह सिद्धांत उच्च स्तर के बालक के लिए ज्यादा उपयोगी होता है।
8. यह सिद्धांत बालक को वास्तविक जीवन ( practical life ) से जोड़ता है।
पुनर्बलन का शिक्षा में प्रयोग :-
1. अध्यापक पुनर्बलन सिद्धांत के द्वारा अधिगम में सक्रियता पर बल देते हैं।
2. शिक्षा के क्षेत्र में पुनर्बलन का बहुत ज्यादा महत्व है। अध्यापक को अधिगम की प्रक्रिया को सुदृश्य बनाने के लिए पुनर्बलन का प्रयोग करना चाहिए।
Important Note : –
पुनर्बलन शब्द से सम्बंधित 1 confusion मेरे भी मन में था और आपके भी मन में होगा मनोवैज्ञानिकों ( C L Hal और स्किनर ) के नाम को लेकर। अगर जहाँ पर पुनर्बलन का सिद्धांत की बात हो तो आप वहां पर C L Hal पर टिक करना और अगर जहाँ पर पुनर्बलन अवधारणा या मनोविज्ञान में पुनर्बलन पर सबसे ज्यादा बल देने वाला की बात हो तो आप स्किनर पर टिक करना।
Important Point :-
1. अमेरिकी मनोवैज्ञानिक स्किनर द्वारा दिया गया क्रिया प्रस्तुत अनुबंधन का सिद्धांत भी पुनर्बलन का सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है।
2. पुनर्बलन के सिद्धांत को English में Reinforcement Theory कहा जाता है।
3. पुनर्बलन की सतत ( लगातार ) अनुसूची सबसे ज्यादा प्रभावी होता है।
4. पुनर्बलन की अनुसूची का उपयोग क्रिया प्रसूत अनुबंधन में किया जाता है।
5. हल ने एक सूत्र दिया था। यह सूत्र है – B = D * H . यहाँ पर B का मतलब है – व्यवहार, D का मतलब है चालक और H का मतलब है आदत।
6. पुनर्बलन कार्यक्रम के दो प्रकार हैं : –
1. सतत
2. आंतरायिक या आंशिक
निष्कर्ष : – पुनर्बलन के सिद्धांत में हल का मानना था कि अधिगम बच्चों के आवश्यकता के अनुसार होनी चाहिए। उनका तात्पर्य था अधिगम के लिए उद्दीपक ( लक्ष्य ) से ज्यादा आवश्यकता का महत्त्व होता है। जब कोई भी बालक अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए कोई क्रिया करता है तो उस क्रिया से वह जल्दी सिख जाता है।