सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत

आज हम लोग आसान शब्दों में सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांतों का वर्णन करेंगे। किताबी भाषा को एक कोने में रखकर बोलचाल की भाषा में पढ़ेंगे। आपको पढ़ते समय ऐसा लगेगा जैसे कोई टीचर आपको पढ़ा रहा है।  

 

इन सिद्धांतों को जानने से पहले हम सामाजिक अध्ययन की परिभाषा जान लेते हैं – सामाजिक अध्ययन छात्रों को समाज में सामान्य जीवन निर्वाह करने योग्य बनाता है। सामाजिक अध्ययन में विभिन्न विषयों का अध्ययन किया जाता है जैसे – इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र और  समाजशास्त्र।    

 

इस टॉपिक के अंतर्गत 8 सिद्धांत पढ़ेंगे जिसे सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रम निर्माण करते समय ध्यान में रखा जाता है। नीचे वाले फोटो को देखकर इस टॉपिक को शुरू करते हैं। 

 

सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत

1. पर्यावरण को केंद्र मानने का सिद्धांत :- 

पर्यावरण हमारे जीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। जन्म से मृत्यु तक मानव का जीवन पर्यावरण से जुड़ा रहता है इसलिए प्रभावित रहता है। इसलिए ये जरुरी हो जाता है कि विद्यालय के सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रम का निर्माण का आधार पर्यावरण होना चाहिए।

सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय पर्यावरण से सम्बंधित सभी तथ्यों का वर्णन होना चाहिए जिस से कि बच्चे को भौतिक और सांस्कृतिक पर्यावरण का ज्ञान हो सके। इसके साथ ही पर्यावरण के संरक्षण पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पर्यावरण के क्षति से जुड़ी सभी समस्याओं का विशेष वर्णन पाठ्यक्रम में होना चाहिए।

जैसे – वायु प्रदूषण, ओजोन परत का समाप्त होना, कृषि में रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग, ग्रीनहाउस का प्रभाव, प्रजातियों का विलुप्त होना, पेड़ – पौधों का काटना, जंगलों की कमी, तापमान का बढ़ना। 

 

2. समाज को केंद्र मानने का सिद्धांत :- 

सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रम निर्माण करते समय हमें समाज को ध्यान में रखना चाहिए।  इसका तात्पर्य यह है कि समाज की भी अपेक्षा और आवश्यकता होती है। समाज यह अपेक्षा करता है कि जिस समाज में बालक पढ़ रहा है आगे चलकर वह उस समाज की सभी आवश्यकताएं को पूरा करे।

वह उस समाज, राज्य और राष्ट्र को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे। उस समाज में रह रहे सभी जाति और धर्म को एक जैसा माने और आपस में भाईचारा कायम रखे। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम का निर्माण करना चाहिए।   

 

3. उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को दृष्टि में रखने का सिद्धांत :- 

सामाजिक अध्ययन का पाठ्यक्रम निर्माण इस प्रकार से करना चाहिए जिससे छात्र अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों को पूरा कर सके। अगर सामाजिक पाठ्यक्रम का निर्माण सही तरह से नहीं किया जाता है तो इसका निर्माण करने का कोई फायदा नहीं है। 

 

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4. उपयोगिता का सिद्धांत :- 

सामाजिक अध्ययन का पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय इस बात को ध्यान में रखना चाहिए। यह पाठ्यक्रम छात्र के जीवन में उपयोगी सिद्ध हो सके। वह अपने जीवन में आने वाले समस्याओं का सामना भी कर सके। छात्र इस सिद्धांत का उपयोग करके समाज के साथ अपना सामंजस्य स्थापित कर सके। वह अपना पेट पाल सके और परिवार का पालन पोषण भी कर सके। 

 

5. बालक के क्रियाशीलता का सिद्धांत :- 

सामाजिक अध्ययन पाठ्यक्रम निर्माण में बालक के क्रियाशीलता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। बालक अपने स्वभाव से क्रियाशील होता है। बालक को चित्र और मानचित्र बनाने का कार्य करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। बालक से मिट्टी का मूर्ति या किसी वस्तु का ढांचा का निर्माण करवाना चाहिए। ऐसा करने से बालक आलसी नहीं होते हैं।  

 

6. पाठ्यक्रम का लचीलेपन का सिद्धांत :- 

ऐसा तो आपने सुना ही होगा परिवर्तन संसार का नियम है। परिस्थिति बदलते रहती है। इसलिए सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम निर्माण के समय यह बात ध्यान रखना चाहिए कि समय और परिस्थिति के अनुसार पाठ्यक्रम ऐसी संभावना हो कि आगे बदला भी जा सके ।  

 

7. शिक्षक से परामर्श का सिद्धांत :- 

किसी भी विद्यालय में शिक्षण को बालक तक पहुँचाने का मुख्य भार शिक्षक के ऊपर होता है। वह बालक से सीधे संबंधित होता है और उस परिवेश को भली-भांति जानता है। पाठ्यक्रम के उद्देश्य को प्राप्त कराने में एक अध्यापक का सबसे अधिक योगदान होता है।

इसलिए सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय शिक्षक से परामर्श लेनी चाहिए। इस कार्य में शिक्षक से परामर्श लेने का एक लाभ यह भी होता है कि शिक्षक के अंदर आत्म संतुष्टि होती है। 

 

8. बाल केन्द्रीयता का सिद्धांत :- 

पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय अगर सबसे अधिक किसी पर ध्यान देना है तो वह है – बालक। क्योंकि बालक का व्यवस्थित ढंग से सर्वांगीण विकास ही पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।

नीचे मैंने कुछ पॉइंट्स लिखा है जो बालक के सीखने की गति को प्रभावित करता है। इसलिए इन बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए। उसकी आवश्यकता, रूचि, भिन्नता, परिवेश, परिवार तथा आर्थिक स्थिति मुख्य रूप से ध्यान में रखा जाना चाहिए।  

निष्कर्ष – अगर आप एक-एक लाइन पुरे ध्यान से पढ़ लिए हैं तो मैं यह दवा कर सकता हूँ कि आप इस टॉपिक को कभी नहीं भूलोगे। बस एक काम और कर लो आप – एक Notes वाली कॉपी उठाओ और उसमें ब्लू कलर वाला पॉइंट लिख लो।

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