संज्ञानात्मक विकास का अर्थ एवं परिभाषा

मैं आज आपको संज्ञानात्मक विकास का अर्थ एवं परिभाषा के बारे में बताने जा रहा हूँ। इस टॉपिक से Teaching Exam में Questions पूछे जाते हैं। अगर आप इस टॉपिक को अच्छी तरह से पढ़ लेंगे तो Exam में इस टॉपिक का एक भी Question नहीं छूटेगा। 

संज्ञानात्मक विकास क्या है

संज्ञानात्मक विकास का अर्थ एवं परिभाषा : –

किसी टॉपिक के बारे में तर्क करना, सोचना, अनुभव करना और हल करना संज्ञातात्मक विकास कहलाता है। इसको English में Cognitive Development Theory कहते हैं।

जीन पियाजे का मानना है कि बच्चे की उम्र के साथ उसके Concept का विकास होता है। 

जीन पियाजे का कहना है कि बच्चे सक्रिय ज्ञान का निर्माता होते हैं तथा वे नन्हें वैज्ञानिक होते हैं। बच्चे संसार के बारे में अपने सिद्धांतों की रचना स्वयं करते हैं। 

 

जीन पियाजे का कहना है कि बच्चों की सोचने का तरीका बड़े लोगों से अलग होता है।

 

संज्ञानात्मक विकास के 6 प्रमुख घटक होते हैं : –
अवधान, भाषा, अधिगम, स्मृति, अनुभूति और विचार

 

जीन पियाजे इतिहास :- 

जीन पियाजे का जन्म 1896 में हुआ था। जीन पियाजे स्विट्जरलैंड के रहने वाले थे। जीन पियाजे को विकासात्मक मनोविज्ञान का जनक कहा जाता है। उन्होंने अपने ही बच्चों पर प्रयोग किया था।

 

संज्ञानात्मक विकास की अवधारणा (Concept of Cognitive Development) :-

अनुकूलन (Adaptation) – वातावरण के साथ अपने आप को ढ़ालना अनुकूलन कहलाता है।

अनुकूलन की दो प्रक्रिया होता है :-

i ) आत्मसात्करण (Assimilation) – पूर्व ज्ञान को नए ज्ञान के साथ जोड़ना आत्मसात्करण कहलाता है।

 

ii ) समायोजन (Accommodation) – पूर्व ज्ञान में परिवर्तन करके वातावरण के साथ तालमेल बैठाना समायोजन कहलाता है।

 

संतुलन (Equilibration) :- इसके द्वारा बच्चा आत्मसात्करण और समायोजन की प्रक्रियाओं के बीच संतुलन बनाता है।

 

स्कीमा (Schema) :- मानव के दिमाग में जो बातें पहले से इकट्ठा (Store) होता है अगर वह उसका प्रयोग करके किसी विषय के प्रति एक अवधारणा (Concept) बनाता है तो उसे स्कीमा कहा जाता है।

मानव शिशु में स्कीमा प्रवृति और प्रतिक्रिया जन्मजात होती है।

 

Organization ( संगठन ) :- पियाजे के सिद्धांत में संज्ञानात्मक प्रणाली के लिए स्कीमाओं को पुनर्व्यवस्थित करना या अलग तरीकों से व्यवस्थित करना और स्कीमाओं से जोड़ना संगठन कहलाता है। (स्कीमा = बालक के मस्तिष्क में जो बातें पहले से होती हैं)

संज्ञानात्मक विकास की कितनी अवस्थाएं होती है

पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएं बताई है :-

1. संवेदी पेशीय अवस्था (Sensory Motor Stage) – इस अवस्था के अंतर्गत बच्चा जन्म से लेकर दो वर्ष तक का होता है। इस अवस्था में बच्चा अपनी ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से सीखता है। ज्ञानेंद्रियां पांच होती हैं – आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा।

 

इसमें ‘वस्तु स्थायित्व’ (Object Permanence) का गुण आ जाता है। यानी बच्चा अपने दिमाग में वस्तुओं की छाप बनाना शुरू कर देता है जिससे वह छिपी हुई वस्तु को भी ढूंढ लेता है।

 

2. पूर्व – संक्रियात्मक अवस्था (Pre – Operational Stage) – इस अवस्था में बच्चा 2 वर्ष से 7 वर्ष तक का होता है। यह क्रिया करने से पहले की अवस्था होती है। इसमें बच्चा सामने आने वाली चीजों को देख पाएगा, समझ पाएगा, लेकिन कोई क्रिया नहीं कर पाएगा।

 

इस Stage में बच्चा प्रतीकों (Symbols) का Use करने में निपुण हो जाता है. जैसे – Cycle शब्द सुन कर उसके Mind में Cycle की एक Image बन जाती है। इस अवस्था में लक्ष्य निर्देशित व्यवहार की क्षमता आ जाती है।

 

पूर्व – संक्रियात्मक अवस्था की विशेषताएं :-

i ) जीववाद (Animism) – जीववाद में बच्चा सजीव और निर्जीव वस्तुओं में अंतर नहीं कर पाता है।

 

ii ) अहंकेन्द्रित (Egocentrism) – अहंकेन्द्रित में बच्चा यह सोचना शुरू कर देता है कि जो वह कर रहा है, सोच रहा है, वह सब ठीक है।

 

iii ) अपलटावी (Irreversibility) – अपलटावी में बच्चा वस्तुओं, संख्याओं आदि को उलटना-पलटना नहीं सिखता।
जैसे – 4 + 6 = 10
         6 + 4 = ?

 

मुद्रा संप्रत्यय, दूरी, भार, ऊंचाई की योग्यता आदि के Concept की कमी इसी अवस्था में होती है।

 

iv ) केन्द्रीकरण (Centration) – एक समय में किसी वस्तु की केवल एक विशेषता पर ध्यान दिए जाने की प्रवृत्ति को केन्द्रीकरण कहते हैं।

 

v ) संरक्षण (Conservation) – संरक्षण में बच्चा किसी वस्तु का Size या Shape में change कर दे तो उसकी Quantity पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन बच्चा इसको समझ नहीं पाता।

 

vi ) क्रमबद्धता (Seriation) – क्रमबद्धता में बच्चा वस्तुओं को उनके आकार में रखना नहीं सीख पाता है।

 

3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage) :- इसमें बच्चा 7 से 11 वर्ष तक का होता है। इस अवस्था में बच्चा सामने रखी हुई वस्तुओं को देखकर कुछ कर सकता है या उन पर चिंतन करना शुरू कर सकता है।

इस अवस्था में भार, संरक्षण, क्रमबद्धता की योग्यता, आदि Concept का गुण आ जाता है।

 

आगमनात्मक तर्कणा (Hypothetical thinking) :- आगमनात्मक तर्कणा 7 से 11 वर्ष की अवस्था में आता है। इस अवस्था में बच्चा उदाहरण के ऊपर तर्क करने लगता है।

 

4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational Stage) :- इस अवस्था में बच्चा 11 वर्ष से 15 वर्ष तक का होता है। यह संज्ञान की सर्वोच्च अवस्था है। इसमें बच्चा अमूर्त चिंतन करने लग जाता है। (संज्ञान = जानना या समझना)

 

निगमनात्मक तर्कणा – इसमें बच्चा नियमों के ऊपर तर्क करने लगता है।

 

पियाजे के सिद्धांत की आलोचना (Criticism) – पियाजे ने मानसिक विकास के चरणों के क्रम को अपरिवर्तनशील बताया है। लेकिन अगर बच्चे को अच्छा वातावरण दिया जाए तो वह अपनी अवस्था की क्षमता से अधिक सीख सकता है।

 

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निष्कर्ष :- जिन पियाजे को संज्ञानात्मक विकास का जनक भी कहा जाता है। इन्होंने संज्ञानात्मक पक्ष पर बल देते हुए संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। वैसे तो विकास गर्भावस्था से प्रारम्भ होता है लेकिन संज्ञानात्मक विकास शैशवावस्था से प्रारम्भ होकर जीवन भर चलती है।

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