स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत | Skinner Ka Kriya Prasut Anubandhan Ka Siddhant

स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत ( Skinner Ka Kriya Prasut Anubandhan Ka Siddhant ) टीचिंग परीक्षा के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण टॉपिक है. आज हम लोग स्किनर के इस सिद्धांत के बारे में अच्छे से समझेंगे.

स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत

स्किनर का क्रिया-प्रस्तुत या सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांत : –

किसी कार्य को करने में जब सफलता मिलती है तो उस कार्य को बार-बार दोहराना क्रिया प्रसूत का अनुबंधन का सिद्धांत कहलाता है. 

 

क्रिया प्रसूत अनुबंधन के सिद्धांत का इतिहास : –

क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत के  प्रतिपादक बी. एफ. स्किनर थे. वे अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे. इस सिद्धांत का प्रतिपादन 1938 में किया गया था.

क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत का अन्य नाम क्या है

क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत के अन्य नाम :-

1. R – S Theory
2. नैमित्तिक अनुबंधन का सिद्धांत
3. कार्यात्मक प्रतिबद्धता का सिद्धांत
4. सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांत
5. अभिक्रमित अनुदेशन का सिद्धांत

 

अभिक्रमित अनुदेशन क्या होता है ?
अभिक्रमित अनुदेशन बच्चों पर आधारित होता है. इसमें बच्चा अपने आप सीखता है. जैसे – बच्चा के सामने विषय-वस्तु को किस इस क्रम में व्यवस्थित किया जाता है कि बालक उसका अध्ययन करके सीख सके. अभिक्रमित अनुदेशन सबसे महत्वपूर्ण है.

 

अभिक्रिया अनुदेशन तीन प्रकार के होते हैं :-

1. रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन
2. शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन
3. मेथैटिक अभिक्रमित अनुदेशन

 

रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन – यह सिद्धांत स्किनर के द्वारा 1952 में दिया गया था। रेखीय अभिक्रमित के अंतर्गत स्किनर ने बताया है कि पूर्व ज्ञान से नवीन ज्ञान को जोड़ कर बच्चों को पढ़ाना चाहिए।

 

शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन – यह सिद्धांत नॉर्मन क्राउड के द्वारा 1960 में दिया गया था। उन्होंने इसके अंतर्गत बताया है कि पहले समस्या को पता लगाइए फिर उसका उपचार कीजिए।

 

मेथैटिक अभिक्रमित अनुदेशन – यह सिद्धांत गिलबर्ट के द्वारा 1962 में दिया गया था। इसमें उन्होंने पाठ्यक्रम पर जोर दिया था।

 

स्किनर का प्रयोग :-

स्किनर ने अपना प्रयोग पहले चूहे पर किया था उसके बाद कबूतर पर किया। स्किनर ने सबसे पहले एक बॉक्स लिया था उसके बाद उसमें एक चूहा को बंद कर दिया। बॉक्स के अंदर एक लिवर लगा हुआ था, उसमें एक छिद्र था। 

 

जब लिवर को दबाया जाता था तब खाना आ जाता था। चूहा को जब भी भूख लगती थी तो वह इधर-उधर घूमने लगता था। अचानक उसका पैर लिवर पर पड़ा उसके बाद छिद्र से खाना आ गया।

 

उसके बाद चूहे ने इस क्रिया को पुनः दोहराया और खाना दोबारा आ गया। इस प्रकार चूहा जब भी प्रतिक्रिया करता था तो खाना आ जाता था। इसी क्रिया को प्रसूत का अनुबंधन सिद्धांत कहा जाता है। 

 

इस प्रयोग से यह निष्कर्ष निकलता है कि पहले अनुक्रिया होती है बाद में उद्दीपन होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जैसे-जैसे पुनर्बलन मिलता है वैसे-वैसे सही अनुक्रिया करने और लक्ष्य तक पहुँचने की प्रक्रिया में तेजी आती है। सीखने की अनुक्रिया में पुनर्बलन का विशेष महत्व होता है।

 

पुनर्बलन क्या होता है :-

जिस उद्दीपक को देने से अनुक्रिया करने की संभावनाएं बढ़ जाती है उसे पुनर्बलन कहते हैं. जैसे – Exam पास करने पर माता-पिता के द्वारा गिफ्ट के रूप में स्कूटर या मोबाईल देना, बच्चे को अगले Exam में फिर से मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है। ( उद्दीपक = ऐसी चीज जो किसी काम को करने के लिए motivate करे )

 

स्किनर का यह मानना है कि शिक्षक के द्वारा छात्र से पूछे गए सवालों का उत्तर को स्वीकार करना या सर को हिलाना भी पुनर्बलन है.

 

क्रिया प्रसूत सिद्धांत का दूसरा नाम क्या है ?
क्रिया प्रसूत सिद्धांत का दूसरा नाम पुनर्बलन का सिद्धांत है.

 

पुनर्बलन दो प्रकार का होता है : –
1. सकारात्मक पुनर्बलन

2. नकारात्मक पुनर्बलन

सकारात्मक पुनर्बलन – यदि प्राणी को सकारात्मक पुनर्बलन दिया जाता है तो प्राणी उस क्रिया को दोहराता है. जैसे – किसी व्यक्ति को अच्छे कार्य के लिए भोजन देना, पानी देना, नौकरी देना, प्रशंसा करना.

 

नकारात्मक पुनर्बलन – यदि प्राणी को नकारात्मक पुनर्बलन दिया जाता है तो प्राणी उस क्रिया को नहीं दोहराता है. जैसे – किसी व्यक्ति को गलत कार्य के लिए डांटना, मना करना, दण्ड देना.

पुनर्बलन अनुसूची दो प्रकार की होती है :-

1. सतत पुनर्बलन अनुसूची – इसमें जब-जब क्रिया होती है तो पुनर्बलन दिया जाता है. जैसे – शिक्षक के द्वारा पूछे गए सवाल का हल करने पर बच्चे की तारीफ करना.

 

2. आंशिक पुनर्बलन अनुसूची – इसमें प्रत्येक क्रिया के लिए पुनर्बलन नहीं दिया जाता है. बल्कि कुछ क्रियाओं के लिए ही पुनर्बलन दिया जाता है. जैसे – सभी सवालों की जगह कुछ सवालों पर ही तारीफ करना.

 

स्किनर के सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत के गुण या विशेषता :-

1. बालक को अनुक्रिया द्वारा सिखाना
2. छात्र तत्कालीन पुनर्बलन से उत्साहित होते हैं
3. अगर परिणाम शीघ्र घोषित होता है तो छात्र को पुनर्बलन मिलता है
4. नकारात्मक व्यवहार को नकारात्मक पुनर्बलन रोकता है

 

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Conclusion ( निष्कर्ष ) :- स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत में यह समझाया गया है कि किसी प्राणी के द्वारा सकारात्मक कार्य के लिए पुनर्बलन दिया जाता है ताकि वह कार्य को दोबारा कर सके. इसी तरह के अन्य टॉपिक के लिए GurujiAdda.com पर Search करें.
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