इस आर्टिकल में आप उदाहरण के साथ पढ़ने वाले हैं – विकास की विशेषताएं। इसके साथ-साथ पढ़ने वाले हैं विकास का अन्य दो महत्वपूर्ण टॉपिक पहला – प्रारंभिक विकास का महत्त्व और दूसरा – विकास-प्रतिमानों का महत्व।
इस आर्टिकल में दिए गए टॉपिक को रटने की जरूरत नहीं है। एक बार पढ़ लेने के बाद आपको वर्षों याद रहेगा।
विकास क्या होता है ?
मानव के जीवन में शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से निरंतर होने वाला परिवर्तन विकास कहलाता है। यह प्रक्रिया गर्भ से लेकर मृत्यु तक चलता है।
विकास की विशेषताएँ :-
1. विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। बालक का विकास तेज गति से भी हो सकती है और धीमी गति से भी हो सकती है लेकिन यह निरंतर होती रहती है।
2. विकास की व्यक्तिगत प्रक्रिया – सामान्यतः व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक विकास साथ-साथ होता है। विकास की व्यक्तिगत प्रक्रिया प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न तरीके से होता है।
लेकिन कभी -कभी विकास की प्रक्रिया एक साथ नहीं होता है। किसी व्यक्ति का एक समय में मानसिक विकास होता है तो दूसरे समय में सिर्फ शारीरिक विकास होता है।
3. विकास एक व्यवस्थित क्रमबद्ध प्रक्रिया है। इसके दो भाग होते हैं –
1. सिफलोकॉडल – इसमें बालक का विकास सिर से लेकर पैर की ओर होता है।
2. प्रोक्सिमोडिजिटल – इसमें बालक का विकास केंद्र से बाहर की ओर होता है।
4. विकास एक अन्तः क्रम प्रक्रिया है। इसमें बालक का विकास वंशानुक्रम और वातावरण क्रम दोनों से होता है लेकिन यह विकास किसी बालक में सिर्फ वंशानुक्रम से भी होता है तो किसी बालक का विकास सिर्फ बाहरी वातावरण से ही प्रभावित होता है।
5. विकास अंतः संबंधित प्रक्रिया है। इसका मतलब है कि विकास की सभी प्रक्रियाएं एक-दूसरे से जुड़े होते हैं जैसे – अगर कोई बालक विकलांग है तो उसका विकास कहीं-न-कहीं सामाजिक विकास को प्रभावित करता है।
6. विकास एकीकृत प्रक्रिया है। जैसे – कोई बालक हाथ और पैर पर चलता है। कुछ समय बाद वह किसी वस्तु को पकड़कर चलने लगता है। (एकीकृत=एक साथ लाना या सम्मिलित करना)
7. विकास संचयी प्रक्रिया है। जैसे – अगर कोई बालक किसी शब्द को आज बोलता है तो उस शब्द के सभी वर्ण उस ने पहले सीखें होंगे। इस तरह से वर्ण सीखने की पूर्व अनुभव को वह संचय करता है। और उसी के आधार पर वह भविष्य में बोलता है।
8. विकास सामान्य से विशिष्ट की ओर होता है। बालक में पहले सामान्य गुण का विकास होता है फिर विशिष्ट गुण का विकास होता है।
9. विकास की भविष्यवाणी की जा सकती है। वर्तमान में बालक के शारीरिक विकास, मानसिक विकास और सामाजिक विकास के आधार पर बालक के सम्पूर्ण विकास की भविष्यवाणी कर सकते हैं।
10. लड़का और लड़की में विकास की दर भिन्न होती है। लड़का के अपेक्षा लड़की में विकास की दर ज्यादा होती है।
11. बालक का आरंभिक विकास बहुत महत्वपूर्ण होता है। बालक में बेसिक ज्ञान के आधार पर ही पता लगाया जा सकता है कि उसका आने वाले समय में उसका मानसिक विकास किस तरह से होगा।
12. बालक के विकास में परिपक्वता और अधिगम महत्वपूर्ण होता है। बालक के विकास के आधार पर परिपक्वता और अधिगम बढ़ते रहता है। (अधिगम = सीखना)
प्रारंभिक विकास का महत्व :-
अगर बालक का प्रारंभिक समय में विकास सही से नहीं होता है तो उसे शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी होती है। इस तरह से हम कह सकते हैं कि बालक का प्रारंभिक विकास बहुत ही जरूरी होता है।
अगर बालक का विकास शुरू में सही से नहीं होता है तो वह मानसिक रूप से कमजोर हो सकता है। वैसे बालक में भाषा दोष और शैक्षिक दोष भी हो सकता है।
प्रारंभिक समय में बालक के विकास के लिए माता-पिता को ध्यान देने की जरुरत होती है। बालक के विकास के लिए उसे पौष्टिक आहार की भी जरूरत होती है। समय-समय पर भोजन देने से बालक का विकास अच्छी तरह से होता है।
प्रारंभिक समय में बालक खुद से नहीं सोच सकता कि उसे क्या करना है और क्या नहीं करना है। उस समय माता-पिता और घर में मौजूद अन्य सदस्य का बच्चे के सामान्य विकास के लिए दायित्व होता है।
बालक का प्रारंभिक विकास के लिए सरकार के द्वारा स्कूलों में भोजन, कपड़ा और शिक्षा फ्री में दी जा रही है।
विकास-प्रतिमानों का महत्त्व :-
बालक की प्रत्येक अवस्था में नए गुणों का बदलाव होता है। मानव और जीव-जंतु में विकास का निश्चित प्रतिमान देखने को मिलता है जो उस वर्ग या जाति के लिए सामान्य होता है। विकास-प्रतिमान ज्ञान की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। (प्रतिमान= एक नया तरीका या बदलाव)
माता-पिता को बालक के विकास-प्रतिमान को आगे बढ़ाने में काफी मदद करनी चाहिए। जिससे उसका शारीरिक और मानसिक विकास तेजी से हो सके।
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2. निर्देशन से आप क्या समझते हैं ?
Conclusion ( सारांश ) – इस आर्टिकल में दिए गए सभी टॉपिक आपको जरूर समझ में आ गया होगा। Teaching से संबंधित अन्य टॉपिक के लिए GurujiAdda.com वेबसाइट पर खोज सकते हैं ।