योजना विधि के पद से आप क्या समझते हैं ? | Yojana Vidhi

आज हम योजना विधि के पद को समझेंगे। इसके साथ ही इस विधि के गुण और दोष को भी समझेंगे। योजना विधि के 6 महत्वपूर्ण पद हैं जिसे हम एक-एक करके पढ़ने वाले हैं।

यहाँ पर आपको यह भी देखने को मिलेगा कि सामाजिक अध्ययन शिक्षण में योजना विधि के विभिन्न पदों का प्रयोग किस प्रकार किया जा सकता है। पद को चरण या सोपान भी कहा जाता है।

सबसे पहले योजना विधि की अवधारणा जॉन डीवी ने दिया था लेकिन विलियम किलपैट्रिक को इस विधि का प्रतिपादक माना जाता है।

योजना विधि शिक्षण की एक ऐसी व्यावहारिक विधि है जिसमें कुछ करके सीखने को प्रेरित किया जाता है। इस विधि में एक समय में एक से ज्यादा छात्र सम्मिलित होते हैं। शिक्षक एक मार्गदर्शक का काम करते हैं। योजना विधि को प्रोजेक्ट विधि और प्रयोजन विधि के नाम से भी जाना जाता है।

योजना विधि से आप क्या समझते हैं

योजना विधि के पद : –

1. विशेष परिस्थिति उत्पन्न करना –
इस विधि का का पहला उद्देश्य ये होना चाहिए कि शिक्षक एक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करें कि विद्यार्थी अपनी इच्छा से उस कार्य को करने के लिए मन बना ले।

ऐसी स्थिति पैदा करने के लिए शिक्षक विभिन्न तरीके को अपना सकते हैं। जैसे – कहानी सुनाना, छात्रों से वाद-विवाद करना, घुमाने ले जाना या किसी ऐतिहासिक या वैज्ञानिक स्थल पर ले जाना।

ऐसा करने के बाद छात्र को प्रोजेक्ट के बारे में बताने से छात्र उत्सुक होंगे उसे क्रियान्वित करने के लिए। 

 

2. योजना का चुनाव –
परिस्थिति उत्पन्न करने के बाद अगला पड़ाव आता है – किसी एक परिस्थिति के चुनाव करने में शिक्षक का मार्गदर्शन करना। शिक्षक को ऐसी योजना का चुनाव करने में मदद करनी चाहिए जिससे बालक के वास्तविक जीवन के किसी खास समस्या को हल करने में मदद मिले।

शिक्षक को हमेशा ये बात ध्यान में रखना चाहिए कि जो भी परिस्थिति का चुनाव हो उसकी प्रकृति सामाजिक होना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे में सामाजिकता का भाव उत्पन्न होगा।

 

3. योजना का कार्यक्रम बनाना –
शिक्षक को छात्र के कार्यक्रम बनाने में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन करना चाहिए। शिक्षक को यह समझाना चाहिए कि अगर छात्र को उस योजना का सफलतापूर्वक समापन करना है तो उसके लिए एक विशेष प्लान बनाना चाहिए। इस प्लान को बनाने के लिए छात्र भी अपने आईडिया दे सकते हैं।
मुख्य रूप से शिक्षक को बच्चे को समझाना चाहिए कि भिन्न-भिन्न योजना को पूरा करने में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ आ सकती हैं, इसकी क्या सीमाएं हो सकती हैं, किन साधनों की जरुरत पड़ेगीं और कितना समय लगेगा।
योजना के कार्यक्रम बनाने का एक हिस्सा यह भी है कि शिक्षक के मार्गदर्शन में छात्र अपनी योजना पुस्तिका में इन सभी बातों को क्रमवार तरीके से नोट कर लें।

4. योजना की पूर्ति –
अब आती है बात योजना की पूर्ति की। एक बार जब योजना बनकर तैयार हो जाए तो शिक्षक को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि योजना में शामिल सभी छात्र को कुछ-न-कुछ काम मिले हों। इसके बाद शिक्षक को योजना को कार्यान्वित करने के लिए छात्रों को उत्साहित करना चाहिए।

एक बार जब योजना पर काम शुरू हो जाए तो यह भी देखना पड़ेगा कि बिना किसी वजह के छात्र योजना पर काम करना तो नहीं न छोड़ दिए हैं। लेकिन कभी भी शिक्षक को कार्य की तेज गति से करने में सहायता नहीं करनी चाहिए। वो खुद से गलती करेंगे और फिर से उस कार्य को अन्य तरीके से करेंगे तो ज्यादा सीखेंगे। शिक्षक को अब बस ध्यानपूर्वक मार्गदर्शन करना चाहिए।

5. योजना पुस्तिका में लिखना –

शिक्षक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्र योजना के अंतर्गत किये गए सभी कार्य को लिखे। इसे शिक्षक को एक निश्चित समय अंतराल पर देखते रहना चाहिए। इससे शिक्षक को योजना की दिशा और कार्य की गति का पता चलता रहेगा।

6. योजना का मूल्यांकन –
जब ये योजना कम्पलीट हो जाए तो इसके बाद इसका मूल्यांकन होना चाहिए। शिक्षक को मूल्यांकन करके छात्रों को योजना के गुण और कमियों के बारे में विस्तार से बताना चाहिए। ऐसा करने से छात्र को यह पता चल जाता है कि उनके द्वारा किये गए सभी कार्य एक निश्चित उद्देश्य को पूरा कर पाया या नहीं।

इस योजना के मूल्यांकन से छात्र को यह भी लाभ मिलेगा कि इस योजना में किये गए गलतियां को वह लाइफ में आगे कभी नहीं दोहराएंगे। इस योजना को सफलतापूर्वक करने में जिन कार्यों से मदद मिली है उन कार्यों को अगले प्रोजेक्ट में भी दुहराया जा सकता है।
ऐसा हम कह सकते हैं कि वैसे तो योजना का मूल्यांकन करना शिक्षक का काम होता है लेकिन इस योजना से छात्र आत्म-विश्लेषण करते हैं। एक तरह से इस स्टेप में उनका प्रशिक्षण हो जाता है।

योजना विधि के गुण

योजना विधि के गुण : – 

1. अध्यापन ज्यादा प्रभावशाली होता है।
2. प्रजातंत्रीय भावना को बढ़ावा देता है।
3. शिक्षण ज्यादा स्थायी होता है।
4. बालक में तर्क और निर्णय करने की क्षमता का विकास बेहतर होता है।
5. यह पद्धति अधिक रोचक होती है।

योजना विधि के दोष

योजना विधि के दोष : –
1. समय अधिक लगता है।
2. प्रत्येक समय सफलता प्राप्त नहीं होती है।
3. पाठ्यक्रम के कई प्रसंग छूट जाते हैं।
4. टाइम और एनर्जी अधिक लगता है।

 

निष्कर्ष – योजना विधि के इन 6 पद को पढ़ने के बाद आप इस निष्कर्ष पर पहुँचते हो कि इस माध्यम से बच्चे में अर्जित ज्ञान लम्बे समय तक रहता है।

अंत में मैं यही कहूंगा कि जरा खुद से पूछो ऐसा किसी ने समझाया है क्या ! मैं इस टॉपिक को समझाने के लिए 4 किताब और ढ़ेर सारे वीडियो का सहारा लिया हूँ। उन सबका निचोड़ आपके सामने प्रस्तुत किया हूँ।

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